कविता / 01-05-2021
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हाँ, बीत गया, वह अतीत,
जो स्वप्न था अभी तक,
जो होता था सत्य प्रतीत!
स्वप्न भी, स्मृति ही तो था,
स्मृति भी, स्वप्न ही तो है,
और निर्मित हुई थी,
'पहचान' जिससे!
'पहचान' भी, स्वप्न ही तो थी,
'पहचान' भी, स्मृति ही तो थी,
'पहचान' भी, अतीत ही तो था,
अतीत भी, स्मृति ही तो थी!
अतीत भी, स्वप्न ही तो था!
स्वप्न भी, अतीत ही तो था!
अतीत भी, अनुभव ही था,
अनुभव भी, स्वप्न ही तो था,
स्वप्न भी, अनुभूति ही,
अनुभव भी, प्रतीति ही!
एक ही प्रतीति, -छवियाँ अनेक!
बीत गई वह प्रतीति भी!
पर नहीं बीता 'मैं'!
मैं अब भी वही हूँ,
मैं अब भी वहीं हूँ,
'पहचान' से, स्मृति से, प्रतीति से,
स्वप्न से, अनुभव से, अतीत से!
अनुभूति से परे!
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