May 24, 2021

मैं और मेरा सुरक्षा-कवच

कविता : 24:05:2021

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मैं और मेरा सुरक्षा-चक्र, 

अकसर ही बातें करते हैं, 

कौन है किसके सहारे,

कौन है किसका सहारा! 

क्या प्रयोजन है मेरा, 

और क्या है, कवच का!

कौन है, जो सोचता है,

कौन किसकी करे रक्षा!

हर घड़ी भयभीत, चिन्तित,

हर घड़ी संत्रस्त, व्याकुल,

जागता रहता निरंतर, 

अंततः सो जाता थककर!

नींद लेकिन टूटते ही, 

फिर वही चिन्ता प्रलाप, 

फिर वही उल्लास पल भर,

फिर वही आशा-विश्वास! 

मैं वही जो नींद में था, 

मैं वही जो जागता है! 

जागने पर फिर ये कैसा, 

द्वन्द्व मुझको भासता है?

मैं और मेरा सुरक्षा-चक्र,

रोज प्रकट-अप्रकट हो,

रोज रोज होते हैं व्यक्त,

रोज ही करते हैं प्रश्न,

अंततः हो अनभिव्यक्त! 

क्या कोई उनमें अकेला,

दूसरे बिन रह पाता!

क्या है फिर दोनों का, 

परस्पर अबूझ नाता!

क्या है फिर दोनों का, 

परस्पर अटूट नाता! 

***






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