कविता : 22-05-2021
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कौन सी चीज़ तुम्हें जोड़ती है ख़ुद से,
कौन सी चीज़ तुम्हें तोड़ती है ख़ुद से!
कौन सी चीज़ तुम्हें जोड़ती है ख़ुदा से,
कौन सी चीज़ करती है जुदा, ख़ुदा से तुम्हें!
ख़ुद से शायद ही कभी पूछा होगा तुमने!
पूछकर जुदा किया होगा, ख़ुद से ही ख़ुद को!
पूछ पाना ख़ुद से, कभी ख़ुद ही, मुमकिन है क्या!
क्या ख़ुद, ख़ुद से है कोई दूसरा, पूछो जिससे!
क्या कभी भी ख़ुद से ख़ुद होता है अलग!
क्या कभी भी ख़ुद से ख़ुदा होता है जुदा!
फिर ये कैसा सवाल, ख़ुद से ख़ुद के जुड़ने का!
फिर ये कैसा सवाल, ख़ुद से टूटने का ख़ुद का!
क्या ये सवाल, ख़याल नहीं, फ़ज़ूल ख्वामख्वाह!
क्या ये सवाल बेमतलब ही नहीं, और बस बेवजह !
फिर क्या होता है, ये ख़ुद से टूटना या जुड़ना!
फिर होता है क्या, ख़ुदा से, जुदा होना, जुड़ना!
ख़याल जब तक है, तब तक ही है सवाल भी यह!
ख़याल ही है ख़ुद बेमतलब की उलझन बेवजह!
बेख़याली में, हाँ ख़याल ख़ुद का भूल जाता है!
बेख़याली में, हाँ ख़याल ख़ुद को भूल जाता है!
बेख़याली भी इसलिए, पहचान नहीं है ख़ुद की!
डूबे रहना ख़यालों में भी नहीं मिसाल है इसकी!
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