November 24, 2018

रामलला !

यदा-यदा हि 
20 जनवरी 2009 को गूगल पर प्रयोग के लिए यह ब्लॉग शुरू किया था।
रामलला के जन्म-स्थल को ध्वस्त कर आततायी अधर्म ने कोई भवन वहाँ खड़ा किया था।
बाबर का धर्म आततायी था / है या नहीं, इस बारे में कुछ कहने का अधिकार मुझे नहीं है और न मैं इस बारे में ठीक से जानता हूँ।  न ही किसी की धार्मिक भावनाओं पर आघात करना मैं चाहूँगा।  किन्तु बाबर का कृत्य अवश्य ही अधर्म का ही ज्वलंत उदाहरण है यह कहना अनुचित न होगा।
किसी भी धर्म-स्थल को ध्वस्त करना क्या अधर्म ही नहीं है?
गीता में अध्याय 3 श्लोक 35 तथा अध्याय  18 श्लोक 47 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :
अध्याय 3, श्लोक 35,
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श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥
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(श्रेयान्-स्वधर्मः विगुणः परधर्मात्-स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मः भयावहः ॥
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भावार्थ :
अच्छी प्रकार से  आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से, अपने अल्प या विपरीत गुणवाले धर्म का आचरण उत्तम है, क्योंकि जहाँ एक ओर अपने धर्म का आचरण करते हुए मृत्यु को प्राप्त हो जाना भी कल्याणप्रद होता है, वहीं दूसरे के धर्म का आचरण भय का ही कारण होता है ।
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अध्याय 18, श्लोक 47,
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श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति  किल्बिषम् ॥
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(श्रेयान् स्वधर्मः विगुणः परधर्मात् सु-अनुष्ठितात् ।
स्वभावनियतम् कर्म कुर्वन् न आप्नोति किल्बिषम् ॥)
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भावार्थ :
अच्छी प्रकार से आचरण किए गए दूसरे के धर्म की तुलना में अपना स्वाभाविक धर्म, अल्पगुणयुक्त हो तो भी श्रेष्ठ है, क्योंकि अपने स्वधर्मरूप कर्म का भली प्रकार से आचरण करते हुए मनुष्य पाप को प्राप्त नहीं होता ।
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बाबर के अनुयायी भी इससे इंकार नहीं कर सकते।
बाबर का 'धर्म' जो भी रहा हो, बाबर का यह कृत्य धर्म कैसे कहा जा सकता है ?
इसलिए बाबर का धर्म माननेवाले यह भी मानेंगे कि इस ऐतिहासिक भूल को सुधारने का समय आ गया है।
और इस बात के लिए सभी मिल-बैठकर सौहार्द्र से बातचीत कर परस्पर सहमति और प्रसन्नता से अयोध्या में श्रीराम के मंदिर को बनाने के लिए, रामलला के वचन को पूरा होने देने के लिए अवसर प्रदान करने का श्रेय भी ले सकते हैं।
इसके लिए सरकार के द्वारा कानून बनाए जाने की माँग करने का मतलब है सरकार को इसका श्रेय देना।
लेकिन सरकार किन्हीं भी कारणों से निर्णय लेने में असमर्थ दिखाई देती है।    
उस स्थान की अक्षय स्मृति धर्म के मानस-पटल पर आज भी पत्थर की लकीर से भी अधिक अमिट अक्षरों में अंकित है।
रामलला भला कैसे भूल सकते हैं ?
उन्होंने जो 'वचन' गीता में दिया था, उसे पूरा करना उनका ही दायित्व है किंतु हम भारतवासी अपना कर्तव्य क्यों भूलें?
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श्री पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ  के you-tube पर दिए गए इस उद्बोधन को पढ़कर साहस हुआ कि 'अयोध्या' के बारे में यह पोस्ट प्रस्तुत करूँ।  वैसे मैं भी उन्हीं की तरह, किसी भी राजनीतिक विचारधारा / पार्टी से सर्वथा असम्बद्ध हूँ।
यहाँ यह लिंक इसीलिए दे रहा हूँ कि सभी पढ़नेवाले उनके विचारों से अवगत हो सकें।
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November 15, 2018

एक अधूरी कहानी

अधूरी खबरें 
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खबरों की भीड़ में भी हम शायद ही कभी कोई खबर पूरी तरह पढ़-सुन पाते हैं।  पूरी खबर वह भी नहीं होती जो हमारे अपने बारे में होती है, हालाँकि हम उसे याददाश्त के लिफ़ाफ़े में बंद कर मन की संदूक में रख देते हैं।  कभी-कभी उसे पूरी तरह पढ़े सुने बिना ही पुड़िया बनाकर हवा में उछाल देते हैं और भूल जाते हैं।  कभी-कभी बार-बार चुपके चुपके पढ़ते रहते हैं लेकिन तब भी वह पूरी नहीं हो पाती। बहुत से लिफ़ाफ़े और कभी कभी एक को खोलने की कोशिश में कोई दूसरा ही खुल जाता है।
कुछ खबरें चिट्ठियों की शक्ल में आती हैं तो कुछ कानोंकान सुनी जाती हैं।  दोनों स्थितियों में कुछ अधूरापन फिर भी होता ही है। कुछ खबरें हम किसी से शेयर करना चाहते हैं क्योंकि खुद से शेयर करने में डर लगता है।
वॉट्स-ऐप के समय में आप ऐसी ही कई अवाँछित खबरें रोज ही पढ़ते और डिलीट करते होंगे।
बहरहाल मेरी खुशकिस्मती रही कि मैंने कभी वॉट्स-ऐप जॉइन नहीं किया।
क्या होती है अधूरी खबर ?
कल ही एक ऐसी खबर पढ़ी।
एक बन्दर, एक माँ की गोद से उसके बच्चे को झपटकर ले गया।
विक्षिप्त कर देनेवाली ऐसी कितनी ही खबरें रोज़ घटती हैं, एक से एक हैरत भरी रोंगटे खड़े कर देनेवाली खबरें।  कोई भी, कहीं भी, कभी भी किसी अप्रत्याशित स्थिति का शिकार हो सकता है और कोई भी, कहीं भी, कभी भी किसी को अप्रत्याशित स्थिति में शिकार बना सकता है।
कभी तो ये घटनाएँ प्रत्यक्षतः और कभी अनचाहे ही प्रायोजित हुई होती हैं।
हर मनुष्य डरा हुआ और घबराया हुआ है फिर भी उत्तेजनाग्रस्त और उन्मादग्रस्त भी है।
निरंतर उत्तेजना की तलाश में, किसी सुख की तलाश में, किसी रोमांच की आशा में, जो उसके भविष्य को अधिक चमकदार बना दे, जोश और उमंग से भर दे, या किसी नशे में इस तरह डुबो दे कि कुछ समय तक संसार और समय का विस्मरण हो जाए।  यह नशा, एक किक हो सकता है या एक 'long-affair' भी हो सकता है।
जिसे वह 'प्यार' समझ सकता है। वह खेल, कला, संगीत, राजनीति या धर्म के क्षेत्र से जुड़ी कोई महत्वाकांक्षा भी हो सकता है। सबसे बड़ी बात कि वह निरंतर आगे (कहाँ?) बढ़ते रहने की अदम्य प्रेरणा भी देता है, जिसमें तमाम दुश्मनियाँ, घृणा, स्वार्थ एक मोहक आवरण में छिपे होते हैं।  जो दिखाई देता है वह वह नहीं होता, जो उस आवरण में छिपा हुआ होता है। 'सफलता' हमेशा क्षणिक ख़ुशी तो दे सकती है जो एक तरह का नशा भी हो सकता है। उतर जाने के बाद पुनः उसे पाना होता है।
कोई खबर कभी पूरी कहाँ होती है? किंतु नई खबरों के लिए हमारी उत्सुकता बनी ही रहती है।  इतनी खबरे हमें रोज़ मिलती रही हैं, -क्या उनसे हमारे मन को कभी ऐसी शान्ति मिलती है कि हम आराम से थोड़ी देर सो सकें? होता तो यही है कि बुरी तरह थक जाने पर भी किसी नई खबर की उम्मीद में हम नींद को आने ही नहीं देते।  यह आदत बन जाती है।
यह भी एक अधूरी कहानी है।
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November 12, 2018

आर्यान्

अयोध्या, अमित शाह और ओवैसी
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ओवैसी ने श्री अमित शाह को कहा कि उनका नाम ईरानी है और यदि इलाहाबाद तथा फैज़ाबाद का नाम बदला जाना चाहिए तो उन्हें खुद का नाम भी बदल लेना चाहिए।
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वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड, सर्ग 54 में वर्णन है :
इत्युक्तस्तु तया राम वसिष्ठस्तु महायशाः। 
सृजस्वेति तदोवाच बलं परबलार्दनम्।। 17
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सुरभिः सासृजत् तदा ।
तस्या हुंभारवोत्सृष्टाः  पह्लवाः शतशो नृप ।। 18 
नाशयन्ति बलं सर्वं विश्वामित्रस्य पश्यतः।
स राजा परमक्रुद्धः क्रोधविस्फारितेक्षणः  ।। 19
पह्लवान् नाशयामास शस्त्रैरुच्चावचैरपि।
विश्वामित्रार्दितान् दृष्ट्वा पह्लवाञ्शतश स्तदा  ।। 20
भूय एवा सृजद् घोराञ्छकान् यवनमिश्रितान्।
तैरासीत् संवृता भूमिः शकैर्यवन मिश्रितैः ।। 21    
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श्रीराम से यह कथा मुनि शतानन्द ने कही।
स्पष्ट है कि  इसमें पहलवी राजाओं के साथ साथ शक तथा यवन नरेशों की उत्पत्ति कैसे हुई यह बतलाया गया है।  महायशाः / यशाः से शाह का उद्भव दृष्टव्य है।  ईरान शब्द भी आर्यान् का अपभ्रश है। 
इसलिए अमित शाह को अपना नाम बदलने की ज़रूरत कदापि नहीं है। 
और न ही स्मृति ईरानी को।
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परशुराम ने 'परशु' को लेकर गोकर्ण (गोवा) की स्थापना की।  अरब सागर (फ़ारस की खाड़ी) से भूमि निकालकर परशु-देश (फारस) में अपना राज्य स्थापित किया।
इस परशु से अथवा पार्श्व या पार्षद (पारसी में फ़रिश्तः) के सज्ञाति / cognate अंग्रेज़ी / इटैलियन में  'फ़ार्स' / 'Farse' / 'Fascist' हुए।
मुसोलिनी की पार्टी का चिन्ह यही 'परशु' था जो कुल्हाड़ी जैसा लकड़ी या घास काटने का औज़ार था जिसे घास या लकड़ी के गट्ठर पर प्रदर्शित किया गया है।
इसी प्रकार जर्मन नाज़ी की पहचान संस्कृत 'नृ' से कैसे नृप, Natsion (nation)  से लेकर तमिल 'नाडु' (देश) से सम्बद्ध है इस पर विस्तार से अपनी बहुत सी पोस्ट में लिख चुका हूँ।
प्रसंगवश यहाँ लिखना उपयुक्त जान पड़ा।
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November 07, 2018

कविता / इस दीवाली

छोटी कविता / इस दीवाली
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तुम हमें यूँ ही याद करते रहना,
कहीं न भूल न जाएँ हम तुमको !
ग़म हमें यूँ ही याद करता रहे,
कहीं न भूल न जाएँ हम ग़म को !
मुबारकवाद है, रस्मे-दुनिया,
याद करता है कौन, वर्ना हमको,
कहीं हम भूल न जाएँ तुमको,
याद तुम कर लिया करना हमको !
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November 06, 2018

आज की कविता / खुशबू

मैं हवा की तरह आया था,
मैं हवा सा लौट जाऊंगा,
तेरी साँसों से तेरे दिल में,
मैं चुपके से उतर जाऊंगा।
नज़र आऊंगा मैं हर तरफ,
लेकिन न देख पाओगे,
हर तरफ क्योंकि मैं तब,
खुशबू सा बिखर जाऊंगा। 
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November 05, 2018

पूर्वावलोकन / In Retrospect ...

आरंभ से अब तक / इतिहास
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दिनांक २०/०१/२००९ को प्रथम ब्लॉग में पहला पोस्ट 'आरंभ' लिखा था।
लगभग १० वर्ष पूरे हो रहे हैं।
इस बीच नेट पर ट्विटर और फेसबुक पर भी बहुत सक्रिय रहा।
वह भी कुछ मित्रों / परिचितों के आग्रह पर। 
लेकिन अब कुछ समय पूर्व से इन दोनों से विदा ले चुका हूँ।  
ब्लॉग लिखने का एकमात्र ध्येय यह था कि अपनी खुशी के लिए कुछ लिखूँ।
इसका उद्देश्य किसी से जुड़ना या अपने को किसी प्रकार से स्थापित करना तो कदापि नहीं था। 
और बिज़नेस या पैसा / यश कमाना तो कल्पना तक में नहीं था, -न है। 
सिद्धांततः और दूसरे कारणों से भी न तो मेरी आजीविका का कोई स्थिर और सुनिश्चित साधन है, न मैं इस बारे में कभी सोचता हूँ।  इसलिए भी कभी-कभी यह सोचकर आश्चर्य होता है कि यह ब्लॉग-उपक्रम कैसे अब तक चल सका।
इसके लिए अवश्य ही Google का आभार !
इस बहाने मुझे लिखने, और प्रस्तुत करने के लिए बहुत से विषयों का अध्ययन करने का अवसर मिला।
यहाँ तक तो ठीक है पर इस दौरान लगता रहा यह जो 'है', क्या वस्तुतः है ?
क्या यह हमेशा रहेगा? रह सकता है?
इसलिए यह बोध भी हमेशा बना रहता है कि यह जो 'है' जैसा लगता है, यह वस्तुतः 'है नहीं' , बस लगता भर 'है', कि यह 'है'  .....
इस बीच swaadhyaaya नामक नया ब्लॉग शुरू किया जिसके व्यूअर्स तीन साल में ही इस 'हिंदी-का-ब्लॉग' के ९ वर्षों में कुल हुए व्यूअर्स से दुगुने हो गए !
ख़ास बात यह कि व्यूअर्स कितने हैं इससे मेरा लिखना अप्रभावित रहा।
 रूचि हो तो मेरे अन्य ब्लॉग देखने के लिए मेरी 'प्रोफाइल' देख सकते हैं।  
सादर !
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