आरंभ से अब तक / इतिहास
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दिनांक २०/०१/२००९ को प्रथम ब्लॉग में पहला पोस्ट 'आरंभ' लिखा था।
लगभग १० वर्ष पूरे हो रहे हैं।
इस बीच नेट पर ट्विटर और फेसबुक पर भी बहुत सक्रिय रहा।
वह भी कुछ मित्रों / परिचितों के आग्रह पर।
लेकिन अब कुछ समय पूर्व से इन दोनों से विदा ले चुका हूँ।
ब्लॉग लिखने का एकमात्र ध्येय यह था कि अपनी खुशी के लिए कुछ लिखूँ।
इसका उद्देश्य किसी से जुड़ना या अपने को किसी प्रकार से स्थापित करना तो कदापि नहीं था।
और बिज़नेस या पैसा / यश कमाना तो कल्पना तक में नहीं था, -न है।
सिद्धांततः और दूसरे कारणों से भी न तो मेरी आजीविका का कोई स्थिर और सुनिश्चित साधन है, न मैं इस बारे में कभी सोचता हूँ। इसलिए भी कभी-कभी यह सोचकर आश्चर्य होता है कि यह ब्लॉग-उपक्रम कैसे अब तक चल सका।
इसके लिए अवश्य ही Google का आभार !
इस बहाने मुझे लिखने, और प्रस्तुत करने के लिए बहुत से विषयों का अध्ययन करने का अवसर मिला।
यहाँ तक तो ठीक है पर इस दौरान लगता रहा यह जो 'है', क्या वस्तुतः है ?
क्या यह हमेशा रहेगा? रह सकता है?
इसलिए यह बोध भी हमेशा बना रहता है कि यह जो 'है' जैसा लगता है, यह वस्तुतः 'है नहीं' , बस लगता भर 'है', कि यह 'है' .....
इस बीच swaadhyaaya नामक नया ब्लॉग शुरू किया जिसके व्यूअर्स तीन साल में ही इस 'हिंदी-का-ब्लॉग' के ९ वर्षों में कुल हुए व्यूअर्स से दुगुने हो गए !
ख़ास बात यह कि व्यूअर्स कितने हैं इससे मेरा लिखना अप्रभावित रहा।
रूचि हो तो मेरे अन्य ब्लॉग देखने के लिए मेरी 'प्रोफाइल' देख सकते हैं।
सादर !
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दिनांक २०/०१/२००९ को प्रथम ब्लॉग में पहला पोस्ट 'आरंभ' लिखा था।
लगभग १० वर्ष पूरे हो रहे हैं।
इस बीच नेट पर ट्विटर और फेसबुक पर भी बहुत सक्रिय रहा।
वह भी कुछ मित्रों / परिचितों के आग्रह पर।
लेकिन अब कुछ समय पूर्व से इन दोनों से विदा ले चुका हूँ।
ब्लॉग लिखने का एकमात्र ध्येय यह था कि अपनी खुशी के लिए कुछ लिखूँ।
इसका उद्देश्य किसी से जुड़ना या अपने को किसी प्रकार से स्थापित करना तो कदापि नहीं था।
और बिज़नेस या पैसा / यश कमाना तो कल्पना तक में नहीं था, -न है।
सिद्धांततः और दूसरे कारणों से भी न तो मेरी आजीविका का कोई स्थिर और सुनिश्चित साधन है, न मैं इस बारे में कभी सोचता हूँ। इसलिए भी कभी-कभी यह सोचकर आश्चर्य होता है कि यह ब्लॉग-उपक्रम कैसे अब तक चल सका।
इसके लिए अवश्य ही Google का आभार !
इस बहाने मुझे लिखने, और प्रस्तुत करने के लिए बहुत से विषयों का अध्ययन करने का अवसर मिला।
यहाँ तक तो ठीक है पर इस दौरान लगता रहा यह जो 'है', क्या वस्तुतः है ?
क्या यह हमेशा रहेगा? रह सकता है?
इसलिए यह बोध भी हमेशा बना रहता है कि यह जो 'है' जैसा लगता है, यह वस्तुतः 'है नहीं' , बस लगता भर 'है', कि यह 'है' .....
इस बीच swaadhyaaya नामक नया ब्लॉग शुरू किया जिसके व्यूअर्स तीन साल में ही इस 'हिंदी-का-ब्लॉग' के ९ वर्षों में कुल हुए व्यूअर्स से दुगुने हो गए !
ख़ास बात यह कि व्यूअर्स कितने हैं इससे मेरा लिखना अप्रभावित रहा।
रूचि हो तो मेरे अन्य ब्लॉग देखने के लिए मेरी 'प्रोफाइल' देख सकते हैं।
सादर !
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