July 30, 2009

जब 'मन' नहीं होता .

जब 'मन' नहीं होता ।


1/.

पर ऐसा कहाँ होता है ?
जब 'मन' नहीं होता ?
अक्सर तो मन होता है,
उदास,
और कभी-कभी,
खिन्न भी ।
पागल, उद्विग्न, या उग्र !
क्रुद्ध, चिंतित या परेशान,
और कभी-कभी,
प्यार में ,
या प्यार की याद में,
डूबा हुआ ।
या,
बस घायल ।
फ़िर, इस सबसे ऊबा हुआ, उचटा हुआ ,
उकताया हुआ ... ... ... ।
काश,
ऐसा होता,
कि 'मन' ही न होता !
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2./-

हाँ, लेकिन कभी-कभी तो ऐसा भी होता है !
जब 'मन' 'नहीं' होता !
जब साँझ का धुंधलका ,
बिखर रहा होता है,
सूरज, क्षितिज से नीचे जा रहा होता है,
सुरमई साँझ का आँचल,
------ ---- कितना फैला होता है, कौन जाने,
समेट लेता है मुझे,
- अपने अंक में,
तब न कोई इच्छा होती है, न डर,
न ऊब, न नींद, न खुमारी, या सपना ।
हाँ, जानता हूँ कि ,
तब 'मन' नहीं होता ।
बस जानता भर हूँ !
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2 comments:

  1. bahut hi sahi kaha hai apane .....jab kabhi man hota hai .....to kuchh our hota hai

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