January 29, 2021

बदलाव (कविता)

मौसम भी रंग बदलता है, 

धरती भी रंग बदलती है,

सूरज भी रंग बदलता है, 

क़ुदरत भी रंग बदलती है, 

प्यार भी रंग बदलता है, 

नफ़रत भी रंग बदलती है, 

हुस्न भी रंग बदलता है,

चाहत भी रंग बदलती है। 

बदलाव ही रंग ज़िंदगी का,

हरेक सूरत सीरत बदलती है! 

फिर वो क्या है जो नहीं बदलता,

मेहनत से तक़दीर भी बदलती है!

क्या बदलते हैं, उसूल-ओ-इरादे भी?

यक़ीं के साथ हक़ीकत बदलती है?

लोग कहते हैं ईमान भी बदलते हैं, 

दीन ओ मज़हब भी बदलते हैं,

ख़ुद, धरम, भगवान बदलते हैं, 

वक्त के साथ इंसान भी बदलते हैं,

फिर वो क्या है जो नहीं बदलता? 

नक्श फ़ितरत भी तो बदलते हैं,

हाल, हालात भी तो बदलते हैं,

हयातो-क़ायनात बदलते हैं, 

ज़ीस्तो-जज़बात भी बदलते हैं, 

इल्मो-अहसास भी बदलते हैं, 

आम और ख़ास भी बदलते हैं,

दूर और पास भी बदलते हैं ।

आईन-ओ-निजाम भी बदलते हैं, 

क़ायदे क़ानून भी बदलते हैं, 

फिर वो क्या है कि नहीं बदलता,

रास्ते, पड़ाव भी बदलते हैं! 

क्या वो मंजिल ही नहीं है, 

जो कभी भी बदलती नहीं?

किसी सपने सी क़ोशिश ज़ारी,

एक उम्मीद जैसी बस, तारी रहती है!

--








January 26, 2021

पार / प्यार (कविता)

दिसंबर 25, 2020, समय 12:45 पर लिखी थी! 

और इसका दूसरा हिस्सा -उसी दिन शाम 5:20 पर!

--

इस नदी पर एक पुल था,

आज वह भी ढह गया,

मिलन का सुख, 

बिछोह का दुःख,

इस नदी में बह गया। 

इस नदी का पाट भी,

विस्तीर्ण इतना हो गया,

क्षितिज तक वह पार है, 

इस पार यह तट हो गया। 

हाँ, कभी उस पार से, 

नौका कोई आती तो है, 

पर न कोई प्रिय, न प्रियजन, 

आज तक आया कभी।

और इस तट से भी कोई,

उस तट नहीं गया कभी। 

हो गए विस्मृत-अपरिचित,

स्नेही सभी, प्रेमी स्वजन, 

स्नेह भी विस्मृत हुआ,

निःस्तब्ध सुस्थिर हुआ मन । 

--

दूसरा हिस्सा :

फिर भी क्षितिज पर जब कभी,

आँखें मेरी ठहरती हैं, 

आह! मेरे हृदय में बन,

हूक सी उभरती है। 

और कोई स्मृति पुरानी, 

चीर देती है हृदय, 

जैसे निर्झरिणी  कोई, 

हृदय से निकलती है! 

--



जाने क्या बात है...

 नींद क्यों नहीं आती! 

साल भर पहले प्राजक्ता शुक्रे द्वारा यू-ट्यूब पर पोस्ट किया गया यह सॉङ्ग वॉच किया था। 

16-12-2020 को सुबह 07:30 पर "नींद" शीर्षक से एक लंबी कविता लिखी थी तो यह वीडियो याद आया था। 

वैसे यू-ट्यूब देखना फ़िलहाल लगभग बंद है क्योंकि मेरा डेस्कटॉप पिछले साल से ख़राब है। मोबाइल पर देखना मुश्किल है। 

अब कविता :

अपनी मरज़ी से आती जाती है, 

दबे पाँओं किसी बिल्ली की तरह, 

किसी भी आहट से चौंक जाती है, 

और उड़ जाती है, तितली की तरह,

आँखों में आते ही फ़िसल जाती है, 

हथेलियों से किसी मछली की तरह,

जैसे चमकती है, सावन की अँधेरी रातों में, 

काले बादलों के बीच, वो बिजली की तरह! 

तुम अगर चाहो तो पालो बिल्ली,

और अगर चाहो तो पालो तितली,

हो सके तो, शायद कभी पालो बिजली,

कैसै पालोगे इस नींद को, तुम लेकिन ?

दूध की प्याली रख दो किसी कोने में, 

कोई ग़ुलदस्ता सज़ा के रख दो अपनी टेबल पर,

और जब भी आती हो वो, तो उसे इज्ज़त देना,

बन्द कर लेना तुम,  -तब आँखें अपनी! 

जैसे तुमने उसे देखा ही नहीं, 

मानों तुम खोए हुए थे ख़यालों में कहीं, 

मानों तुम ग़ुम थे, तसव्वुर में किसी, 

जैसे उसके आने से, तुम थे ग़ाफ़िल ।

और फ़िर रोज रोज आएगी-जाएगी,

बाज-वक्त, बावक्त या बेवक्त भी कभी,

और तुम वक्त भी तय कर सकते हो, उसका शायद!

उसकी मरज़ी से, जब भी वह आना चाहे! 

तुम उसे बुला भी नहीं सकते, 

बहला फ़ुसला भी नहीं सकते! 

हाँ अगर चाहो तो रोक सकते हो शायद, 

फिर भी अनचाहे ही आ टपकेगी कभी। 

पलक झपकते,  माक़ूल किसी भी पल वो, 

तुम उसे टाल भी तो नहीं सकते! 

जैसे आती है मौत भी कभी कभी,

 -अकसर!

दबे पाँओं,  दबे क़दमों से, बेआवाज़ कभी!

नींद भी मौत ही तो है छोटी सी, 

मौत भी नींद ही है लंबी सी बहुत! 

तुम नहीं जागते न सोते हो, 

जागता सोता नहीं है मन भी, 

कौन फिर जागता या सोता है? 

क्या वो है, सिर्फ जो ख़याल ही नहीं?

जो हरेक पल ही जाग पड़ता है, 

और फिर सो भी जाता है अगले पल ही,

अपनी मरज़ी से आता जाता है, 

तुम उसे बुला भी तो नहीं सकते!

बहला फ़ुसला भी तो नहीं सकते!

फिर उसे रोक भी कहाँ पाते हो!  

जब भी चाहेगा आ ही धमकेगा,

तुम उसे भुला भी तो नहीं सकते! 

--

 





January 25, 2021

पिछले समय में

 इस ब्लॉग को आरंभ किए दस से अधिक वर्ष बीत गये ।

पाँच छः वर्षों पहले "स्वाध्याय" ब्लॉग लिखना शुरू किया था। 

पुराने ब्लॉग के "views" लगभग 82,000 हैं,  जबकि नये के इससे चौगुने अर्थात् लगभग 3,20,000 हैं।

कल किसी पाठक के सुझाव पर अमरीकी कवि H.W.Longfellow की एक कविता का हिंदी भाषान्तर लिखा और पोस्ट किया था। 

H.W.Longfellow की कविता इतनी सरल प्रतीत हुई कि मुझे उसके भाषान्तर में जरा भी कठिनाई प्रतीत नहीं हुई।

इसका एक संभावित कारण यह भी हो सकता है कि वे उपन्यासकार सॉमरसेट मॉम / Somerset Moughm की तरह भारतप्रेमी रहे हों। 

अपने "स्वाध्याय" ब्लॉग में मैंने धर्म (Truth), अध्यात्म (Reality) तथा सामाजिक राजनैतिक परंपरा (Socio-Political-Religion) पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। 

भाषाशास्त्र और लिपिशास्त्र (Philology)  तथा इससे जुड़े अन्य विषयों पर भी गंभीरतापूर्वक व विस्तारपूर्वक लिखा है। 

यह सब उपनिषद् सूत्रों से प्रेरित और शासित होकर लिखा है ।

उपनिषदों तथा सनातन धर्म के ये सूत्र संक्षेप में इस प्रकार हैं :

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। 

प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः।। 

(मनुस्मृति) 

इसी प्रकार :

"मा विद्विषावहै"

तथा 

"ततो न विजुगुप्सते"

भी सनातन धर्म के मूल मार्गदर्शक तत्व हैं ।

पाँच महाव्रत (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) तो महर्षि पतञ्जलि के योगदर्शन का आधारभूत तत्व ही है। 

इसलिए बौद्ध, जैन तथा सिख परंपराएँ / धर्म भी सनातन धर्म के ही विविध रूप हैं। 

"एस धम्म सनंतनो" 

तथा 

"एक ओंकार सतनाम"

में भी इसे देखा जा सकता है। 

परंपरा की दृष्टि से मुख्यतः दो ही आस्तिक परंपराएँ धरती पर सदा रही हैं। एक है ब्रह्म या ब्राह्मवादी, और दूसरी अब्राह्म अर्थात् ब्रह्म से इतर। इनमें परस्पर मतभिन्नता तो है, किन्तु ईश्वर के अस्तित्व से विरोध नहीं है। 

H. W. Longfellow की पृष्ठभूमि इसलिए मुझे जानी पहचानी प्रतीत होती  है। और इसलिए इस कविता में "Grave" के लिए मैंने "क़ब्र" या "दफ़नाना" जैसे शब्दों को प्रयोग करना उचित नहीं समझा। 

सनातन धर्म में केवल ज्ञानी को ही उसके देहत्याग के बाद  समाधि दी जाती है, न कि किसी अन्य मनुष्य को। 

सनातन धर्म मूलतः द्वैत तथा अद्वैत दोनों मतों को स्वीकार करता है। 

द्वैत की तरह से जीव, जगत तथा परमात्मा,

और अद्वैत की तरह से एकमेव अद्वितीय ब्रह्म अर्थात् परम परमात्म तत्व जो प्राणिमात्र के हृदय में स्थित हुआ नित्य ही "अहम्-अहम्" के रूप में स्फुरित है।

इस कविता में उसी नित्य वस्तु की ओर ले जानेवाले महापुरुषों का संकेत किया गया प्रतीत होता है। 

एकेश्वरवाद (monotheism) तथा 

बहुदेववाद (polytheism)

के विषय में भी अपने "स्वाध्याय" ब्लॉग में अत्यंत विस्तार से अंग्रेज़ी तथा हिन्दी में भी लिखा ही है। 

यह पोस्ट मुझे अपने ब्लॉग-लेखन का एक सिंहावलोकन करने का अवसर देता है। 

धन्यवाद गूगल! 

--

--



January 24, 2021

Henry Wadsworth Longfellow

 "What the heart of the young man said to the psalmist" :

हिन्दी अनुवाद 

एक युवाहृदय ने 'स्मृतिकार' (psalmist) से क्या कहा? 

सुदीर्घ अंतहीन संख्याओं का उल्लेख करते हुए, 

मुझसे यह न कहो, 

कि जीवन एक खोखला स्वप्न मात्र है!

क्योंकि जो निद्रित है, वह मृत के समान ही है।

और यथार्थ वह नहीं, जैसा कि प्रतीत होता है! 

जीवन निपट यथार्थ है!  उत्कट और वास्तविक !

और मिट्टी तले दबा दिया जाना, 

नहीं है गंतव्य जीवन का!

आत्मा के बारे में ऐसा तो कभी नहीं कहा गया था कि :

तुम मिट्टी के एक कण भर हो, 

और अंततः तुम्हें मिट्टी में ही मिलना है! 

बल्कि तुमसे तो सदैव यही कहा जाता रहा है कि :

सतत कर्म करते रहो! 

ताकि आगामी प्रत्येक कल, 

आज से और भी सुदूर, आगे हो!

कला दीर्घसूत्री है और काल त्वरायुक्त! 

और यद्यपि हमारे हृदय सुदृढ और साहसी हैं, 

फिर भी किसी शवयात्रा में बजते उन ढोलों की तरह,

धीमे,  शोकपूर्ण स्वरों में धड़क रहे हैं जिनके मुख और आवाजें, 

बलपूर्वक मानों दबाकर अवरुद्ध कर दी गई हैं! 

संसार के विस्तृत युद्ध-क्षेत्र में, जीवन के पड़ाव पर, 

मूक, हाँके जा रहे पशुओं की भाँति न हो जाओ! 

युद्ध करो!  संघर्ष में किसी वीर की तरह!

भविष्य कितना भी मोहक क्यों न दिखाई दे, 

उस पर भरोसा न करो! 

मृत अतीत ही दबाए मिट्टी-तले,

उसके अपने मृतक! 

कर्म करो! -जीवंत वर्तमान में! 

हृदयपूर्वक अपनी आत्मा में स्थिर होकर,  

सिर पर परमात्मा का वरद हस्त लेकर! 

सभी महान पुरुषों के जीवन यही स्मरण दिलाते हैं कि :

हम अपने जन्म को भव्य और दिव्य बना सकते हैं! 

और यहाँ से विदा होते समय, छोड़ जा सकते हैं,

समय की रेत पर, अपने वे सारे पद-चिन्ह !

ताकि जीवन के विराट सागर पर शायद,

कभी किसी भटके-भूले, एकाकी, विस्मृत, 

नौकाभग्न, नाविक-बन्धु की दृष्टि उन पर जा ठहरे,

और वह आशा-उत्साह से भर जाए, 

उमंग और धैर्य से तट की ओर बढ़ चले! 

इसलिए क्यों न हम,  उठ खड़े हों, उद्यमशील हों, 

भावी का स्वागत करने के लिए उद्यत!

पुनः पुनः प्राप्त करें, सतत अध्यवसाययुक्त होकर, 

(आत्मा की अमरता के) उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए,

श्रमसंलग्न होना और धैर्यशील होना सीखें! 

--

This is done in an attempt to answer a reader's suggestion. Thanks for the suggestion and inspiration !