नींद क्यों नहीं आती!
साल भर पहले प्राजक्ता शुक्रे द्वारा यू-ट्यूब पर पोस्ट किया गया यह सॉङ्ग वॉच किया था।
16-12-2020 को सुबह 07:30 पर "नींद" शीर्षक से एक लंबी कविता लिखी थी तो यह वीडियो याद आया था।
वैसे यू-ट्यूब देखना फ़िलहाल लगभग बंद है क्योंकि मेरा डेस्कटॉप पिछले साल से ख़राब है। मोबाइल पर देखना मुश्किल है।
अब कविता :
अपनी मरज़ी से आती जाती है,
दबे पाँओं किसी बिल्ली की तरह,
किसी भी आहट से चौंक जाती है,
और उड़ जाती है, तितली की तरह,
आँखों में आते ही फ़िसल जाती है,
हथेलियों से किसी मछली की तरह,
जैसे चमकती है, सावन की अँधेरी रातों में,
काले बादलों के बीच, वो बिजली की तरह!
तुम अगर चाहो तो पालो बिल्ली,
और अगर चाहो तो पालो तितली,
हो सके तो, शायद कभी पालो बिजली,
कैसै पालोगे इस नींद को, तुम लेकिन ?
दूध की प्याली रख दो किसी कोने में,
कोई ग़ुलदस्ता सज़ा के रख दो अपनी टेबल पर,
और जब भी आती हो वो, तो उसे इज्ज़त देना,
बन्द कर लेना तुम, -तब आँखें अपनी!
जैसे तुमने उसे देखा ही नहीं,
मानों तुम खोए हुए थे ख़यालों में कहीं,
मानों तुम ग़ुम थे, तसव्वुर में किसी,
जैसे उसके आने से, तुम थे ग़ाफ़िल ।
और फ़िर रोज रोज आएगी-जाएगी,
बाज-वक्त, बावक्त या बेवक्त भी कभी,
और तुम वक्त भी तय कर सकते हो, उसका शायद!
उसकी मरज़ी से, जब भी वह आना चाहे!
तुम उसे बुला भी नहीं सकते,
बहला फ़ुसला भी नहीं सकते!
हाँ अगर चाहो तो रोक सकते हो शायद,
फिर भी अनचाहे ही आ टपकेगी कभी।
पलक झपकते, माक़ूल किसी भी पल वो,
तुम उसे टाल भी तो नहीं सकते!
जैसे आती है मौत भी कभी कभी,
-अकसर!
दबे पाँओं, दबे क़दमों से, बेआवाज़ कभी!
नींद भी मौत ही तो है छोटी सी,
मौत भी नींद ही है लंबी सी बहुत!
तुम नहीं जागते न सोते हो,
जागता सोता नहीं है मन भी,
कौन फिर जागता या सोता है?
क्या वो है, सिर्फ जो ख़याल ही नहीं?
जो हरेक पल ही जाग पड़ता है,
और फिर सो भी जाता है अगले पल ही,
अपनी मरज़ी से आता जाता है,
तुम उसे बुला भी तो नहीं सकते!
बहला फ़ुसला भी तो नहीं सकते!
फिर उसे रोक भी कहाँ पाते हो!
जब भी चाहेगा आ ही धमकेगा,
तुम उसे भुला भी तो नहीं सकते!
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