January 25, 2021

पिछले समय में

 इस ब्लॉग को आरंभ किए दस से अधिक वर्ष बीत गये ।

पाँच छः वर्षों पहले "स्वाध्याय" ब्लॉग लिखना शुरू किया था। 

पुराने ब्लॉग के "views" लगभग 82,000 हैं,  जबकि नये के इससे चौगुने अर्थात् लगभग 3,20,000 हैं।

कल किसी पाठक के सुझाव पर अमरीकी कवि H.W.Longfellow की एक कविता का हिंदी भाषान्तर लिखा और पोस्ट किया था। 

H.W.Longfellow की कविता इतनी सरल प्रतीत हुई कि मुझे उसके भाषान्तर में जरा भी कठिनाई प्रतीत नहीं हुई।

इसका एक संभावित कारण यह भी हो सकता है कि वे उपन्यासकार सॉमरसेट मॉम / Somerset Moughm की तरह भारतप्रेमी रहे हों। 

अपने "स्वाध्याय" ब्लॉग में मैंने धर्म (Truth), अध्यात्म (Reality) तथा सामाजिक राजनैतिक परंपरा (Socio-Political-Religion) पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। 

भाषाशास्त्र और लिपिशास्त्र (Philology)  तथा इससे जुड़े अन्य विषयों पर भी गंभीरतापूर्वक व विस्तारपूर्वक लिखा है। 

यह सब उपनिषद् सूत्रों से प्रेरित और शासित होकर लिखा है ।

उपनिषदों तथा सनातन धर्म के ये सूत्र संक्षेप में इस प्रकार हैं :

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। 

प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः।। 

(मनुस्मृति) 

इसी प्रकार :

"मा विद्विषावहै"

तथा 

"ततो न विजुगुप्सते"

भी सनातन धर्म के मूल मार्गदर्शक तत्व हैं ।

पाँच महाव्रत (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) तो महर्षि पतञ्जलि के योगदर्शन का आधारभूत तत्व ही है। 

इसलिए बौद्ध, जैन तथा सिख परंपराएँ / धर्म भी सनातन धर्म के ही विविध रूप हैं। 

"एस धम्म सनंतनो" 

तथा 

"एक ओंकार सतनाम"

में भी इसे देखा जा सकता है। 

परंपरा की दृष्टि से मुख्यतः दो ही आस्तिक परंपराएँ धरती पर सदा रही हैं। एक है ब्रह्म या ब्राह्मवादी, और दूसरी अब्राह्म अर्थात् ब्रह्म से इतर। इनमें परस्पर मतभिन्नता तो है, किन्तु ईश्वर के अस्तित्व से विरोध नहीं है। 

H. W. Longfellow की पृष्ठभूमि इसलिए मुझे जानी पहचानी प्रतीत होती  है। और इसलिए इस कविता में "Grave" के लिए मैंने "क़ब्र" या "दफ़नाना" जैसे शब्दों को प्रयोग करना उचित नहीं समझा। 

सनातन धर्म में केवल ज्ञानी को ही उसके देहत्याग के बाद  समाधि दी जाती है, न कि किसी अन्य मनुष्य को। 

सनातन धर्म मूलतः द्वैत तथा अद्वैत दोनों मतों को स्वीकार करता है। 

द्वैत की तरह से जीव, जगत तथा परमात्मा,

और अद्वैत की तरह से एकमेव अद्वितीय ब्रह्म अर्थात् परम परमात्म तत्व जो प्राणिमात्र के हृदय में स्थित हुआ नित्य ही "अहम्-अहम्" के रूप में स्फुरित है।

इस कविता में उसी नित्य वस्तु की ओर ले जानेवाले महापुरुषों का संकेत किया गया प्रतीत होता है। 

एकेश्वरवाद (monotheism) तथा 

बहुदेववाद (polytheism)

के विषय में भी अपने "स्वाध्याय" ब्लॉग में अत्यंत विस्तार से अंग्रेज़ी तथा हिन्दी में भी लिखा ही है। 

यह पोस्ट मुझे अपने ब्लॉग-लेखन का एक सिंहावलोकन करने का अवसर देता है। 

धन्यवाद गूगल! 

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