अधूरी खबरें
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खबरों की भीड़ में भी हम शायद ही कभी कोई खबर पूरी तरह पढ़-सुन पाते हैं। पूरी खबर वह भी नहीं होती जो हमारे अपने बारे में होती है, हालाँकि हम उसे याददाश्त के लिफ़ाफ़े में बंद कर मन की संदूक में रख देते हैं। कभी-कभी उसे पूरी तरह पढ़े सुने बिना ही पुड़िया बनाकर हवा में उछाल देते हैं और भूल जाते हैं। कभी-कभी बार-बार चुपके चुपके पढ़ते रहते हैं लेकिन तब भी वह पूरी नहीं हो पाती। बहुत से लिफ़ाफ़े और कभी कभी एक को खोलने की कोशिश में कोई दूसरा ही खुल जाता है।
कुछ खबरें चिट्ठियों की शक्ल में आती हैं तो कुछ कानोंकान सुनी जाती हैं। दोनों स्थितियों में कुछ अधूरापन फिर भी होता ही है। कुछ खबरें हम किसी से शेयर करना चाहते हैं क्योंकि खुद से शेयर करने में डर लगता है।
वॉट्स-ऐप के समय में आप ऐसी ही कई अवाँछित खबरें रोज ही पढ़ते और डिलीट करते होंगे।
बहरहाल मेरी खुशकिस्मती रही कि मैंने कभी वॉट्स-ऐप जॉइन नहीं किया।
क्या होती है अधूरी खबर ?
कल ही एक ऐसी खबर पढ़ी।
एक बन्दर, एक माँ की गोद से उसके बच्चे को झपटकर ले गया।
विक्षिप्त कर देनेवाली ऐसी कितनी ही खबरें रोज़ घटती हैं, एक से एक हैरत भरी रोंगटे खड़े कर देनेवाली खबरें। कोई भी, कहीं भी, कभी भी किसी अप्रत्याशित स्थिति का शिकार हो सकता है और कोई भी, कहीं भी, कभी भी किसी को अप्रत्याशित स्थिति में शिकार बना सकता है।
कभी तो ये घटनाएँ प्रत्यक्षतः और कभी अनचाहे ही प्रायोजित हुई होती हैं।
हर मनुष्य डरा हुआ और घबराया हुआ है फिर भी उत्तेजनाग्रस्त और उन्मादग्रस्त भी है।
निरंतर उत्तेजना की तलाश में, किसी सुख की तलाश में, किसी रोमांच की आशा में, जो उसके भविष्य को अधिक चमकदार बना दे, जोश और उमंग से भर दे, या किसी नशे में इस तरह डुबो दे कि कुछ समय तक संसार और समय का विस्मरण हो जाए। यह नशा, एक किक हो सकता है या एक 'long-affair' भी हो सकता है।
जिसे वह 'प्यार' समझ सकता है। वह खेल, कला, संगीत, राजनीति या धर्म के क्षेत्र से जुड़ी कोई महत्वाकांक्षा भी हो सकता है। सबसे बड़ी बात कि वह निरंतर आगे (कहाँ?) बढ़ते रहने की अदम्य प्रेरणा भी देता है, जिसमें तमाम दुश्मनियाँ, घृणा, स्वार्थ एक मोहक आवरण में छिपे होते हैं। जो दिखाई देता है वह वह नहीं होता, जो उस आवरण में छिपा हुआ होता है। 'सफलता' हमेशा क्षणिक ख़ुशी तो दे सकती है जो एक तरह का नशा भी हो सकता है। उतर जाने के बाद पुनः उसे पाना होता है।
कोई खबर कभी पूरी कहाँ होती है? किंतु नई खबरों के लिए हमारी उत्सुकता बनी ही रहती है। इतनी खबरे हमें रोज़ मिलती रही हैं, -क्या उनसे हमारे मन को कभी ऐसी शान्ति मिलती है कि हम आराम से थोड़ी देर सो सकें? होता तो यही है कि बुरी तरह थक जाने पर भी किसी नई खबर की उम्मीद में हम नींद को आने ही नहीं देते। यह आदत बन जाती है।
यह भी एक अधूरी कहानी है।
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खबरों की भीड़ में भी हम शायद ही कभी कोई खबर पूरी तरह पढ़-सुन पाते हैं। पूरी खबर वह भी नहीं होती जो हमारे अपने बारे में होती है, हालाँकि हम उसे याददाश्त के लिफ़ाफ़े में बंद कर मन की संदूक में रख देते हैं। कभी-कभी उसे पूरी तरह पढ़े सुने बिना ही पुड़िया बनाकर हवा में उछाल देते हैं और भूल जाते हैं। कभी-कभी बार-बार चुपके चुपके पढ़ते रहते हैं लेकिन तब भी वह पूरी नहीं हो पाती। बहुत से लिफ़ाफ़े और कभी कभी एक को खोलने की कोशिश में कोई दूसरा ही खुल जाता है।
कुछ खबरें चिट्ठियों की शक्ल में आती हैं तो कुछ कानोंकान सुनी जाती हैं। दोनों स्थितियों में कुछ अधूरापन फिर भी होता ही है। कुछ खबरें हम किसी से शेयर करना चाहते हैं क्योंकि खुद से शेयर करने में डर लगता है।
वॉट्स-ऐप के समय में आप ऐसी ही कई अवाँछित खबरें रोज ही पढ़ते और डिलीट करते होंगे।
बहरहाल मेरी खुशकिस्मती रही कि मैंने कभी वॉट्स-ऐप जॉइन नहीं किया।
क्या होती है अधूरी खबर ?
कल ही एक ऐसी खबर पढ़ी।
एक बन्दर, एक माँ की गोद से उसके बच्चे को झपटकर ले गया।
विक्षिप्त कर देनेवाली ऐसी कितनी ही खबरें रोज़ घटती हैं, एक से एक हैरत भरी रोंगटे खड़े कर देनेवाली खबरें। कोई भी, कहीं भी, कभी भी किसी अप्रत्याशित स्थिति का शिकार हो सकता है और कोई भी, कहीं भी, कभी भी किसी को अप्रत्याशित स्थिति में शिकार बना सकता है।
कभी तो ये घटनाएँ प्रत्यक्षतः और कभी अनचाहे ही प्रायोजित हुई होती हैं।
हर मनुष्य डरा हुआ और घबराया हुआ है फिर भी उत्तेजनाग्रस्त और उन्मादग्रस्त भी है।
निरंतर उत्तेजना की तलाश में, किसी सुख की तलाश में, किसी रोमांच की आशा में, जो उसके भविष्य को अधिक चमकदार बना दे, जोश और उमंग से भर दे, या किसी नशे में इस तरह डुबो दे कि कुछ समय तक संसार और समय का विस्मरण हो जाए। यह नशा, एक किक हो सकता है या एक 'long-affair' भी हो सकता है।
जिसे वह 'प्यार' समझ सकता है। वह खेल, कला, संगीत, राजनीति या धर्म के क्षेत्र से जुड़ी कोई महत्वाकांक्षा भी हो सकता है। सबसे बड़ी बात कि वह निरंतर आगे (कहाँ?) बढ़ते रहने की अदम्य प्रेरणा भी देता है, जिसमें तमाम दुश्मनियाँ, घृणा, स्वार्थ एक मोहक आवरण में छिपे होते हैं। जो दिखाई देता है वह वह नहीं होता, जो उस आवरण में छिपा हुआ होता है। 'सफलता' हमेशा क्षणिक ख़ुशी तो दे सकती है जो एक तरह का नशा भी हो सकता है। उतर जाने के बाद पुनः उसे पाना होता है।
कोई खबर कभी पूरी कहाँ होती है? किंतु नई खबरों के लिए हमारी उत्सुकता बनी ही रहती है। इतनी खबरे हमें रोज़ मिलती रही हैं, -क्या उनसे हमारे मन को कभी ऐसी शान्ति मिलती है कि हम आराम से थोड़ी देर सो सकें? होता तो यही है कि बुरी तरह थक जाने पर भी किसी नई खबर की उम्मीद में हम नींद को आने ही नहीं देते। यह आदत बन जाती है।
यह भी एक अधूरी कहानी है।
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