अयोध्या, अमित शाह और ओवैसी
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ओवैसी ने श्री अमित शाह को कहा कि उनका नाम ईरानी है और यदि इलाहाबाद तथा फैज़ाबाद का नाम बदला जाना चाहिए तो उन्हें खुद का नाम भी बदल लेना चाहिए।
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वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड, सर्ग 54 में वर्णन है :
इत्युक्तस्तु तया राम वसिष्ठस्तु महायशाः।
सृजस्वेति तदोवाच बलं परबलार्दनम्।। 17
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सुरभिः सासृजत् तदा ।
तस्या हुंभारवोत्सृष्टाः पह्लवाः शतशो नृप ।। 18
नाशयन्ति बलं सर्वं विश्वामित्रस्य पश्यतः।
स राजा परमक्रुद्धः क्रोधविस्फारितेक्षणः ।। 19
पह्लवान् नाशयामास शस्त्रैरुच्चावचैरपि।
विश्वामित्रार्दितान् दृष्ट्वा पह्लवाञ्शतश स्तदा ।। 20
भूय एवा सृजद् घोराञ्छकान् यवनमिश्रितान्।
तैरासीत् संवृता भूमिः शकैर्यवन मिश्रितैः ।। 21
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श्रीराम से यह कथा मुनि शतानन्द ने कही।
स्पष्ट है कि इसमें पहलवी राजाओं के साथ साथ शक तथा यवन नरेशों की उत्पत्ति कैसे हुई यह बतलाया गया है। महायशाः / यशाः से शाह का उद्भव दृष्टव्य है। ईरान शब्द भी आर्यान् का अपभ्रश है।
इसलिए अमित शाह को अपना नाम बदलने की ज़रूरत कदापि नहीं है।
और न ही स्मृति ईरानी को।
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परशुराम ने 'परशु' को लेकर गोकर्ण (गोवा) की स्थापना की। अरब सागर (फ़ारस की खाड़ी) से भूमि निकालकर परशु-देश (फारस) में अपना राज्य स्थापित किया।
इस परशु से अथवा पार्श्व या पार्षद (पारसी में फ़रिश्तः) के सज्ञाति / cognate अंग्रेज़ी / इटैलियन में 'फ़ार्स' / 'Farse' / 'Fascist' हुए।
मुसोलिनी की पार्टी का चिन्ह यही 'परशु' था जो कुल्हाड़ी जैसा लकड़ी या घास काटने का औज़ार था जिसे घास या लकड़ी के गट्ठर पर प्रदर्शित किया गया है।
इसी प्रकार जर्मन नाज़ी की पहचान संस्कृत 'नृ' से कैसे नृप, Natsion (nation) से लेकर तमिल 'नाडु' (देश) से सम्बद्ध है इस पर विस्तार से अपनी बहुत सी पोस्ट में लिख चुका हूँ।
प्रसंगवश यहाँ लिखना उपयुक्त जान पड़ा।
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ओवैसी ने श्री अमित शाह को कहा कि उनका नाम ईरानी है और यदि इलाहाबाद तथा फैज़ाबाद का नाम बदला जाना चाहिए तो उन्हें खुद का नाम भी बदल लेना चाहिए।
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वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड, सर्ग 54 में वर्णन है :
इत्युक्तस्तु तया राम वसिष्ठस्तु महायशाः।
सृजस्वेति तदोवाच बलं परबलार्दनम्।। 17
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सुरभिः सासृजत् तदा ।
तस्या हुंभारवोत्सृष्टाः पह्लवाः शतशो नृप ।। 18
नाशयन्ति बलं सर्वं विश्वामित्रस्य पश्यतः।
स राजा परमक्रुद्धः क्रोधविस्फारितेक्षणः ।। 19
पह्लवान् नाशयामास शस्त्रैरुच्चावचैरपि।
विश्वामित्रार्दितान् दृष्ट्वा पह्लवाञ्शतश स्तदा ।। 20
भूय एवा सृजद् घोराञ्छकान् यवनमिश्रितान्।
तैरासीत् संवृता भूमिः शकैर्यवन मिश्रितैः ।। 21
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श्रीराम से यह कथा मुनि शतानन्द ने कही।
स्पष्ट है कि इसमें पहलवी राजाओं के साथ साथ शक तथा यवन नरेशों की उत्पत्ति कैसे हुई यह बतलाया गया है। महायशाः / यशाः से शाह का उद्भव दृष्टव्य है। ईरान शब्द भी आर्यान् का अपभ्रश है।
इसलिए अमित शाह को अपना नाम बदलने की ज़रूरत कदापि नहीं है।
और न ही स्मृति ईरानी को।
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परशुराम ने 'परशु' को लेकर गोकर्ण (गोवा) की स्थापना की। अरब सागर (फ़ारस की खाड़ी) से भूमि निकालकर परशु-देश (फारस) में अपना राज्य स्थापित किया।
इस परशु से अथवा पार्श्व या पार्षद (पारसी में फ़रिश्तः) के सज्ञाति / cognate अंग्रेज़ी / इटैलियन में 'फ़ार्स' / 'Farse' / 'Fascist' हुए।
मुसोलिनी की पार्टी का चिन्ह यही 'परशु' था जो कुल्हाड़ी जैसा लकड़ी या घास काटने का औज़ार था जिसे घास या लकड़ी के गट्ठर पर प्रदर्शित किया गया है।
इसी प्रकार जर्मन नाज़ी की पहचान संस्कृत 'नृ' से कैसे नृप, Natsion (nation) से लेकर तमिल 'नाडु' (देश) से सम्बद्ध है इस पर विस्तार से अपनी बहुत सी पोस्ट में लिख चुका हूँ।
प्रसंगवश यहाँ लिखना उपयुक्त जान पड़ा।
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