कविता 15-05-2021
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पूरे कभी हों कि न हों सपने,
तो कोई बात नहीं,
सपने मगर फिर भी,
हमेशा देखते रहिए ज़रूर !
ये भी क्या कम है,
कि इसी बहाने से,
जिन्दगी तो गुजर जाएगी,
शायद बेहतर, कुछ बेहतर!
डर भी एक सपना है,
उम्मीद भी एक सपना है,
कल भी एक सपना था,
कल भी एक सपना है,
वहम भी एक सपना है,
शक भी एक सपना है,
खुद भी एक सपना है,
खुदा भी एक सपना है,
जन्नतो जहन्नुम, या कि फिर,
पाप, पुण्य भी एक सपना है!
सपने तो सभी पराए ही हैं,
इनमें से कौन सा अपना है!
चले आते हैं नींद में सारे-सब,
कहाँ से आते हैं, जाते हैं कब,
उनींदा देख भी नहीं पाता है,
आके चले जाते हैं कैसे कब!
जब तक कि सोया है कोई,
नींद में, या कि नशे में कोई,
सपने सभी बदस्तूर आते हैं,
डराने डरावने भी कभी कभी !
और तब नींद उचट जाती है,
करवटें बदलते बदलते ही,
रात मुश्किल से बीत पाती है!
फिर भी आते हैं, कभी-कभी,
मदिर, रसीले या मधुर सपने,
इसलिए जागो मत सोनेवालों!
देखते रहो हमेशा सपने!!
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