कविता 15-05-2021
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मज़हब तो चारा है,
सियासत है बंसी,
जनता तो मछली है,
तिजारत है काँटा!
ताजि़रात तो तरीका है,
मार्शीयत है मशीन,
मरकरी से मार्स तक,
मार्केट से मार्शल तक,
आदमी दर आदमी,
मारने का औजा़र!
किन्तु अब बदल गए,
शिकार के तरीके,
अब बिछाते हैं जाल,
एक हिस्से को घेरकर,
घेरते हैं बाक़ी हिस्से,
और घिर जाती हैं,
जब मछलियाँ,
समेटते हैं जाल,
हर तरफ से!
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शब्द-शास्त्र, अर्थ-शास्त्र, युद्ध-शास्त्र, ज्योतिष-शास्त्र,
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