RELATION AND RELATIONSHIP.
------------------------©-----------------------
संबंध का अर्थ है सातत्य, निरंतरता ।
संबंध मूलतः दो प्रकार का होता है :
लक्ष्यकेन्द्रित (Target oriented) और प्रक्रियाकेन्द्रित (function-oriented).
संबंध इस दृष्टि से पुनः तीन प्रकारों से बाँटा जा सकता है :
व्यापारिक (commercial), व्यावसायिक (professional) और व्यावहारिक (behavioral)
संबंध किसी आवश्यकता के साथ और उसकी पूर्ति के लिए पैदा होता है या किसी प्रक्रिया का एक अंग होता है।
लक्ष्यकेन्द्रित संबंध सदैव अपने प्रयोजन तक सीमित होता है और प्रयोजन सिद्ध हो जाने पर समाप्त हो जाता है। मूलतः तो इसमें भावना या भावुकता के लिए कोई स्थान नहीं होता, किन्तु भावना या भावुकता के आवरण में संशय, अनिश्चय और संदेह ही संबंध को परिभाषित, विघटित और दूषित करते रहते हैं।
व्यापारिक, व्यावसायिक और व्यावहारिक तीनों ही प्रकार के संबंध वैसे तो तात्कालिक होते हैं, किन्तु समय अर्थात् भविष्य की आशा तथा आशंका, या अतीत के अनुभव(रूपी) ज्ञान के संदर्भ में वर्तमान को परिभाषित करते रहना तीनों प्रकार के संबंधों को पुनरावृत्ति-परक बना देता है इसलिए सभी संबंध समय के साथ दुहराव-युक्त आवश्यकता होकर या तो यंत्रवत जड, नीरस और उबाऊ हो जाते हैं, या किसी बाध्यता के कारण उन्हें ढोया जाता है। इसे शायद आदर्श, कर्तव्य या नैतिकता या धर्म भी कहकर यद्यपि सतत ढोया जाता है, और ऐसा न कर पाने पर प्रायः ग्लानि, अपमान या अपराध-बोध भी पैदा हो सकता है। स्पष्ट है कि ऐसी ग्लानि, अपमान, या अपराध-बोध भावनात्मक प्रतिक्रिया, डर, निराशा आदि पर ही निर्भर होता है। इस प्रकार जीवन असंतोष की एक अंतहीन श्रृंखला बन जाता है, जिसमें नये संबंधों की ताज़ा हवा आते रहने से उसी मात्रा में ताज़गी और चैतन्य, प्राण और उत्साह भी जागृत होते रहते हैं, किन्तु अतीत के संबंध और उनके दोहराव की समाप्ति होने तक जीवन में असंतुष्टि पीछा नहीं छोड़ती।
किसी तरह के नशे में डूबे रहकर मनुष्य अपने जीवन में क्षणिक रूप से आभासी सुख की अनुभूति भी कर लेता है, उसका आदी (addict) भी हो जाता है, जो उसका भ्रम ही होता है। यह नशा सफलता, आदर्श या कर्तव्य जैसा प्रशंसनीय, या शराब, धन, यश और कीर्ति जैसा शुद्धतः भौतिक भी हो सकता है।
लेकिन यह समस्या मनुष्य को ही अधिक पीड़ित करती है।
दूसरे 'अविकसित' बुद्धियुक्त पशु, पक्षी आदि जीव 'समय' को उस तरह से काल्पनिक अतीत और अनुमानित भविष्य के रूप में इतनी दूर तक देख पाने में शायद ही सक्षम होते हों, जैसा कि प्रत्येक 'विकसित' बुद्धिवाला मनुष्य हुआ करता है!
***
No comments:
Post a Comment