कविता : 31-05-2021
--------------©--------------
चाह ही 'मैं' है,
मृत्यु की चाह भी!
राह ही मंजिल है,
सत्य की राह भी!
आह ही आशा है,
वियोग की आह भी!
छाँह ही मुक्ति है,
प्रेम की छाँह भी!!
***
कविता : 31-05-2021
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चाह ही 'मैं' है,
मृत्यु की चाह भी!
राह ही मंजिल है,
सत्य की राह भी!
आह ही आशा है,
वियोग की आह भी!
छाँह ही मुक्ति है,
प्रेम की छाँह भी!!
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