कविता : 20-07-2021
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न ज़रूरत ही है, न कोई मतलब है,
तो आखिर, किस चीज़ की तलब है!
क्या हैं फिर मायने ज़िन्दगी के,
हरेक चीज़ अगर बेमतलब है!
तलाश किसकी है, किसलिए है,
तलाश करने का क्या सबब है!
वक्त गुज़ारना ही अगर मक़सद है,
तो मर जाना कहाँ, बेमक़सद है!
यही अंजाम है ज़िंदगी का अगर,
ज़िन्दगी किस निजाम के तहत है!
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