July 14, 2021

जब भी!

कविता : 14-07-2021

असमंजस

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मैंने जब भी मरना चाहा,

मौत दग़ा दे गई मुझे!

मैंने जब भी जीना चाहा,

जीना रास न आया मुझे!

क्या खोना-पाना था मरकर,

क्या पाना-खोना था जीकर,

जीते जी भी, अब तक भी,

नहीं समझ में आया मुझे!

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