July 10, 2021

भीगा धरती का तन-मन!

कविता : 10-07-2021

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तपती जलती सूखी धरती को, 

आकर आतुर मेघों ने सींचा,

कोई बिछा गया धरती पर,

धीरे धीरे हरा गलीचा!

कण कण तृप्त हुआ धरती का, 

सोते निर्झर चंचल होकर, 

दौड़ पड़े हर ओर भूमि पर,

भीगा धरती का तन-मन! 

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