Can Science explain the mystery of :
Consciousness / consciousness?
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"क्या विज्ञान 'चेतना' के रहस्य को स्पष्ट कर सकता है?"
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उपरोक्त शीर्षक / caption है उस लेख का जिसे
The Irish Times
ने अपने किसी पोस्ट में प्रकाशित किया है और गूगल ने उसे
अपने होम-पेज पर न्यूज़ प्रिव्यू के रूप में प्रस्तुत किया है।
उस पोस्ट के लिए इस सूचना पर क्लिक करते ही वह साइट खुलती है जिसमें कहा जाता है :
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स्पष्ट है कि मुझे इसकी ज़रूरत महसूस नहीं होती।
न कोई मज़बूरी या किसी प्रकार की कोई बाध्यता है।
किन्तु इन्हीं कारणों से मैं बहुत सी तथाकथित बौद्धिक विषयों से संबंधित जानकारियों से वंचित हो जाता हूँ।
ऐसा नहीं है कि मैं किसी भी क्षेत्र का विशेषज्ञ हूँ, किन्तु जब ऐसे विषयों के बारे में कुछ पढ़ता हूँ तो मन में अनेक प्रश्न और संदेह पैदा होते हैं, जिनका निवारण करने में मुझे कहीं से कोई मदद मिलती दिखाई नहीं देती।
पहला सवाल तो यही है कि कोई साइट पहले से ही मेरे या किसी व्यूअर के डिवाइस पर कैसे अपनी 'कुकीज़' का प्रयोग कर सकती है? क्या यह नैतिकता की दृष्टि से स्वीकार्य है?
दूसरा सवाल यह कि क्या यह व्यूअर की स्वतंत्रता में बाधा और हस्तक्षेप नहीं है?
यद्यपि यह तो प्रशंसनीय है कि कोई साइट पहले ही उसकी इस नीति को व्यूअर के समक्ष स्पष्ट कर देती है, किन्तु इस प्रकार से क्या वह स्वयं ही व्यूअर को आगे बढ़ने और स्वयं को अभिव्यक्त करने से हतोत्साहित नहीं कर देती?
दुर्भाग्य से आज का पूरा मीडिया जिन शक्तियों से संचालित हो रहा है उनके अपने अपने निहित स्वार्थ और लक्ष्य हैं और उनकी पीठ के पीछे पुनः ऐसी और बड़ी तथा बहुत बड़ी शक्तियों की सहायता और प्रेरणा तो है ही।
इस प्रकार की स्थिति में मेरे जैसा कोई साधनहीन, किसी मिशन विशेष के लिए कार्य न करनेवाला मनुष्य यही कर सकता है कि वह कहीं न कहीं मीडिया से कम्प्रोमाइज़ कर ले, या किसी न किसी खेमे (खेले?) में शामिल हो जाए।
हाँ वह केवल एन्टरटैनमेन्ट के लिए भी मीडिया का उपयोग (या दुरुपयोग) कर सकता है, और मीडिया अन्ततः यही तो चाहता भी है! ताकि उसका व्यापार व्यवसाय द्रुत-गति से चलता और फलता-फूलता रहे!
इस सबके परिणाम-स्वरूप संसार का क्या भला-बुरा हो रहा है, इस बारे में सोचने के लिए शायद ही किसी की कोई रुचि हो, और शायद ही किसी के लिए इसका कोई महत्व हो!
तो यह है यथास्थिति और यथास्थितिवाद!
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