July 03, 2021

तीन पँखुड़ियाँ

मेरे ड्राइंग-रूम में दो सीलिंग फैन्स लगे हैं। पिछले दो साल का अधिकाँश समय इसी हॉल में बीता है। यह वास्तव में ऐसा हॉल है, जिसमें पार्टीशन कर लिया जाए, तो इसे ड्राइंग-कम-डाइनिंग रूम कहा जाता है। फ़ुरसत बहुत रहती है, जो काम कर सकता हूँ उन्हें करने में मन नहीं लगता, और जिनमें मन लगता है,  उन्हें कर पाने की सुविधा नहीं है। मोबाइल पर न्यूज़ देख लेता हूँ, वीडियो देखने में या म्यूजिक, संगीत सुनने में दिलचस्पी नहीं है। कुछ खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं और किसी से बातचीत करने के लिए न तो कोई विषय है, न ही कोई ऐसा परिचित, दोस्त, या अन्य व्यक्ति जिससे बातचीत हो सके। कहा जा सकता है कि मैं बहुत बोर होनेवाला और बोर करनेवाला आदमी हूँ। 

30 जून को अख़बार में श्री जे. कृष्णमूर्ति का लेख पढ़ रहा था। सवाल ऊब के बारे में था। 

"हम क्यों ऊबते हैं?" 

उन्होंने जो कहा उसे आप उनकी पुस्तकों में या उनके ऐसे लेखों आदि में जो अनेक स्थानों पर उपलब्ध हैं पढ़ सकते हैं । आप यदि इस प्रश्न को महत्वपूर्ण नहीं मानते तो आपके पास इससे बचने के लिए बहुत से तर्क भी होते हैं। सच तो यह है कि संसार में मन को बाँधे रखने के इतने साधन हैं कि उम्र ही कम प्रतीत होती है। किसी को दुनिया घूमनी है, किसी को पैसा कमाना है,  किसी को राष्ट्र, समाज, मानव, या पशु-पक्षियों की सेवा करना है, किसी को ईश्वर-प्राप्ति या ऐसा ही कोई दूसरा कार्य करना होता है। यह भी सच है कि कोई राउंड द क्लॉक अपने कार्य में लगा रहे यह भी संभव नहीं है। शारीरिक आवश्यकताएँ अपनी जगह होती हैं, स्वास्थ्य और आर्थिक समस्याएँ भी मनुष्य के लिए इतनी ही महत्वपूर्ण होती हैं । और समय कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल भी होता है। फिर भी यह प्रश्न कभी न कभी हर मनुष्य के सामने आता है। 

ऊब से बचने के लिए भी मनुष्य के पास कई उपाय और बहाने होते हैं। मनोरंजन की दुनिया उस पर लगातार आक्रमण करती रहती है, और वह भौतिक साधनों की चकाचौंध से अभिभूत होता रहता है। 

मेरे कमरे में लगे वो दोनों पंखे मानों दो समांतर हैं :

एक की पँखुड़ियाँ मानों कर्म, भोग और ज्ञान तथा दूसरे की मानों सफलता, विफलता और संघर्ष की कहानी कहती हैं। 

उन पंखुड़ियों की ही तरह कर्म, भोग और ज्ञान निरंतर एक के पीछे दूसरा, दूसरे के पीछे तीसरा और तीसरे के पीछे पहला, इस तरह घूमते रहते हैं। 

दूसरी ओर सफलता,  विफलता और संघर्ष भी। 

बोलो कितने तीतर! 

बिजली कभी भी आती और चली जाती है। 

तब वे पँखुड़ियाँ धीरे-धीरे रुककर ठहर जाती हैं ।

मनुष्य चेतन प्राणी है, जिसके पास मन नामक यंत्र है। 

मनुष्य स्वयं ही यह यंत्र है या इस यंत्र का स्वामी है, इस प्रश्न की ओर शायद ही किसी का ध्यान जा पाता है।

यंत्र स्वयं चेतन है या चेतनता ही यंत्र है यह भी पूछा जा सकता है। क्या यंत्र कभी ऊबता है?

मन जो कभी ऊबता है तो कभी बहुत व्यस्त होता है तो वह ज्ञान, कर्म और भोग की अति पर ही होता है।

सफलता या विफलता क्षणिक लेकिन संघर्ष छोटा या बड़ा हो सकता है।  समय की दृष्टि से भी। 

एक सवाल फिर और आता है :

ऊबता कौन है?

***


No comments:

Post a Comment