May 07, 2022

दिल से!

कविता / 08-05-2022

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मैं और जीवन

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यह जीवन चिन्ताओं से भरा,

भय, व्याकुलताओं से भरा,

शंका, आशंकाओं से भरा,

इस जीवन में सुख कैसे हो! 

हाँ, बहला लेता हूँ मन को,

मन, मुझको बहला लेता है,

मैं बदला लेता हूँ मन से,

मन मुझसे बदला लेता है! 

मैं स्मृतियों को छलता हूँ,

स्मृतियाँ मुझको छलती हैं,

स्मृतियों-संग उठते विचार,

प्रतीति, अतीत की होती है।

यह अतीत, अतीत का विचार,

स्मृति, अतीत की यह प्रतीति,

क्षण भर में हो उठती सजीव,

क्षण भर में हो जाती विलीन!

यह स्वप्न था, या कि हुआ ऐसा?

मन में सन्देह उभरता है, 

यह अतीत है, या है सपना!

क्षण क्षण सजीव जो होता है! 

ऐसे कितने, हैं अतीत मेरे? 

ऐसी कितनी ही अनुभूतियाँ,

ऐसे कितने, हैं अनुभव मेरे, 

ऐसी कितनी ही प्रतीतियाँ! 

क्या वे आती-जाती रहती हैं, 

या वे रहती हैं, वे मुझमें ही!

क्या खुद ही उनसे जुड़कर,

मैं नहीं उलझता, उनमें ही? 

क्या मैं स्मृति हूँ या अतीत?

क्या विचार हूँ, या प्रतीति? 

अनुभव हूँ, या हूँ अनुभूति,

फिर क्यों उनसे है, मुझे प्रीति!

क्यों होता हूँ मैं आसक्त, 

क्यों मैं हो जाता हूँ उद्विग्न,

यह 'मैं' विचार है, या कोई, 

उनसे जो अन्य, नितान्त भिन्न!

संवेदन जिसका होता है, 

'मैं' और 'मैं' का यह विचार,

अभिव्यक्ति, व्यक्ति, दोनों का ही, 

क्या चेतनता ही, नहीं आधार! 

चेतनता यह, जो है जीवन भी,

टुकड़े टुकड़े है, या है अखण्ड,

जिसमें है ओतप्रोत सब कुछ,

जो अखिल विश्व, सारा ब्रह्मांड!

समय, अतीत, स्मृति या विचार,

जिसमें अनंत जग होते स्फुरित!

क्या मैं हूँ, या है यह 'मैं-विचार',

देख अचंभित, है / हूँ विस्मित!

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