ये त्रिणाचिकेताः ...
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कठोपनिषद्, अध्याय १, तृतीया वल्ली
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ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके
गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे।।
छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति
पञ्चाग्नयो ये त्रिणाचिकेताः।।१।।
पिछले पोस्ट में इसका उल्लेख किया गया।
अब विस्तार से :
ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे।
छाया-आतपौ ब्रह्मविदो वदन्ति पञ्चाग्नयः ये त्रिणाचिकेताः।।
"छायातपौ" और "पञ्चाग्नयो / पञ्चाग्नयः" को ही स्पष्ट करना यहाँ आवश्यक है। शेष यथावत् हैं।
ऋतं -- अस्तित्व के द्वारा प्रदत्त उपहार,
पिबन्तौ -- का सेवन करनेवाले दोनों (द्विवचन पुंल्लिंग),
सुकृतस्य लोके -- यज्ञ इत्यादि शुभ और पुण्यकर्म करनेवालों के लोक में,
(ये दोनों, -मन और आत्मा, जो मानों)
गुहां प्रविष्टौ -- जो अप्रकट रूप से स्थित हैं, उनमें से भी एक (मन) सतत सक्रिय है, जबकि मन स्वयं वृत्तियों का प्रवाह भर होने से यह मन, वह अचल, अटल कूटस्थ 'मैं' (आत्मा) कदापि नहीं हो सकता, जिसके द्वारा प्रकाशित (illuminated) होने पर ही यह प्रवाह अस्तित्व ग्रहण करता है। फिर भी मन सतत ही अपने आपको 'मैं' मानकर कभी कर्ता, कभी भोक्ता, कभी ज्ञाता तो कभी स्वामी होने के भ्रम से मोहित हो जाता है। इस प्रकार एक कृत्रिम सत्ता के रूप में यह आभासी व्यक्तित्व प्रकट और अप्रकट होता रहता है।
आत्मा न तो कर्ता है, न भोक्ता, न ज्ञाता, न स्वामी और न ही यह व्यक्ति भी। फिर भी मन उस अधिष्ठान आत्मा के आश्रय से अपना स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध कर लेता है। इसलिए भूल से या भाषागत रीति से भोक्ता (पिबन्तौ) कह दिया गया है। वे दोनों ही दिखलाई न देते हुए भी उनका अस्तित्व स्वप्रमाणित है ही।
परमे परार्धे -- वे जहाँ हैं वह स्थान हमें दिखाई नहीं देता इसलिए उस स्थान को परम परार्ध कहा गया।
छायातपौ -- छाया-आतपौ जैसे छाया और धूप एक ही स्थान पर एक दूसरे से संलग्न होते हैं, यह मन तथा आत्मा उसी तरह परस्पर अत्यन्त घनिष्ठता से संश्लिष्ट हैं। अर्थात् इन्हें एक दूसरे से पृथक कर पाना बहुत कठिन है।
ब्रह्मविदः वदन्ति -- ब्रह्म को जाननेवाले कहते हैं :
पञ्चाग्नयः -- प्राण रूपी पाँच अग्नियाँ,
ये - जो ये,
त्रिणाचिकेताः -- तीन प्रकार की अग्नियों - लोकाग्नि, स्वर्ग्य और ज्ञान अग्नि का साधन करने वाले, पाँच प्रकार की प्राणोपासना करनेवाले ये उपासक।
इसे पाँच महाभूत और तीन गुणों के आधार पर भी स्पष्ट किया जा सकता है।
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यह मेरे लिए कुछ कठिन अवश्य है, किन्तु मैं इसे यथासंभव पूरी तरह से समझने का प्रयास कर रहा हूँ।
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