नचिकेता के वैराग्य, विवेक
और धैर्य की परिपक्वता,
और परीक्षा
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यमराज द्वारा नचिकेता को इस प्रकार के प्रलोभन दिए जाने पर भी वह जरा भी प्रभावित न हुआ। उसने शान्तिपूर्वक यमराज के सारे वचन सुने, और फिर प्रत्युत्तर में उनसे कहा :
श्वोभावा मर्त्यस्य यदन्तकैतत्
सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेजः।।
अपि सर्वं जीवितमल्पमेव
तवैव वाहा तव नृत्यगीते।।२६।।
न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यो
लप्स्यामहे वित्तमद्राक्ष्म चेत् त्वा।।
जीविष्यामो यावदीशिष्यसि त्वं
वरस्तु मे वरणीयः स एव।।२७।।
अजीर्यतानाममृतानामुपेत्य
जीर्यन् मर्त्यः क्वधःस्थः प्रजानन्।।
अभिध्यायन् वर्णरतिप्रमोदा-
नतिदीर्घे जीविते को रमेत।।२८।।
यस्मिन्निदं विचिकित्सन्ति मृत्यो
यत्साम्पराये महति ब्रूहि नस्तत्।।
योऽयं वरो गूढमनुप्रविष्टो
नान्यं तस्मान्नचिकेता वृणीते।।२९।।
"हे यमराज! मर्त्य मनुष्य के समस्त विषयभोग इन्द्रियाश्रित होते हैं, आयु के बढ़ने के साथ इन्द्रियों का बल, क्षमता, और सामर्थ्य सतत क्षीण होते चले जाते हैं। जीवन कितना भी दीर्घ भी क्यों न हो, इस दृष्टि से तो अल्प ही होता है, अर्थात् उसका अन्त हो जाना सुनिश्चित ही है। उपभोग की जिन वस्तुओं, जैसे कि भव्य और विशाल रथों, नृत्य-गान आदि विषयों का प्रलोभन आप दे रहे हैं, उन्हें आप ही अपने पास रखिए!
और यह भी तो सच है, कि मनुष्य के पास कितना भी धन क्यों न हो, उससे उसे कभी सन्तोष ही नहीं होता है। चूँकि हमने अब आपके दर्शन कर ही लिए हैं तो हमें सुख से जीवन निर्वाह करने के लिए जितना आवश्यक और पर्याप्त है, उतना धन मिलता ही रहेगा। और जब तक आपका शासन हम पर है, इस मृत्यु-लोक में तब तक हम जीवित भी रहेंगे ही। अतः मैं तो आपसे वही वर पाना, अर्थात् यह जानना चाहता हूँ कि मृत्यु हो जाने के पश्चात् (मनुष्य का) क्या होता है!
हे यमराज! आपके जैसे अजर और अमर देवतुल्य महात्मा के सान्निध्य को प्राप्त कर लेने के बाद ऐसा विवेकशील कौन होगा, जो कि (मृत्यु के रहस्य को जानने के बजाय) क्षणिक साँसारिक भोगों के सुख में लिप्त और मग्न होना और उन्हें प्राप्त करने की कामना से मोहित होगा!
हे यमराज! मृत्यु हो जाने के पश्चात् जीवन का क्या होता है, यह जीवन रहता है या नहीं, इस विषय में जो जिज्ञासा-विवेचना की जाती है, कृपया उस अत्यन्त गूढ, छिपे हुए, महान रहस्य के बारे में हमसे कहिए! नचिकेता इसी वर की प्राप्ति आपसे करने का इच्छुक चाहता है, उसे कोई अन्य वर नहीं चाहिए!
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