May 05, 2022

अम्बर यह अपार!

बाल-कविता / 05-05-2022

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मन पंछी, तन घोंसला, बगिया सब संसार,

अम्बर जैसे पट अपार, जिसका आर न पार! 

मन पंछी उड़ता रहता, पर जब भी थक जाता है,

लौट आता है पुनः नीड़ पर, घड़ी दो घड़ी सो जाता है।

बगिया है लेकिन बहुत बड़ी, उसको ऐसा लगता है,

क्या होगा इसके बाहर, आखिर कौन वहाँ पर बसता है!

हर बार यही कोशिश होती थी, इसका मैं पता लगाऊँ,

लेकिन पंखों में कितनी ताकत, बाहर मैं कैसे जाऊँ! 

हाँ यह शायद हो सकता है, आखिर को उसने सोचा, 

एक बच्चे को तब देखा, जब बगिया में वह था आया। 

पंछी को पहले डर तो लगा, फिर भी उसने हिम्मत की, 

पहले उसके कंधे पर जा बैठा, फिर उससे दोस्ती की। 

कुछ दिन जब उसके साथ रहा, तो उसका घर भी देख लिया, 

एक दिन आखिर साथ उसके, उसके घर भी चला गया! 

बच्चा हुआ बहुत खुश उसने सोने का पिंजरा बनवाया,

पंछी भी हुआ बहुत खुश, पिंजरा वह उसको भाया। 

धीरे धीरे बड़ा हुआ वह, बच्चा भी उसके साथ साथ,

दोस्ती भी यूँ ही बढ़ती गई, बीते बरस कब क्या पता। 

बच्चा भूल गया पंछी को, फिर जाकर बसा विदेश,

पंछी भी उसको भूल गया, लौट आया फिर अपने देश! 

यह बगिया जैसी भी है, ऐसी छोटी भी तो नहीं है, 

इतनी भी तो काफी है, जीवन भी इतना काफी है!

बाहर क्या है जान लिया, तो उससे भी आखिर क्या,

नीड़ अपना, अपनी बगिया, उससे बढ़कर दुनिया क्या! 

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