May 02, 2022

यमराज द्वारा प्रदत्त तीन वर

अनुपश्य यथा पूर्वे

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(कठोपनिषद् अध्याय १, वल्ली १)

पातञ्जल योगसूत्र, साधनपाद याद आया :

दृष्टृदृश्ययोः संयोगो हेयहेतुः।।१७।।

प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं भोगापवर्गार्थं दृश्यम्... ।।१८।।

विशेषाविशेषलिङ्गमात्रालिङ्गानि गुणपर्वाणि।।१९।।

दृष्टा दृशिमात्रः शुद्धोऽपि प्रत्ययानुपश्यः।।२०।।

तदर्थ एव दृश्यस्य आत्मा।।२१।।

अहंवृत्ति को ही अहं-प्रत्यय भी कहा जाता है। 

प्रत्ययानुपश्य का अर्थ हुआ, दृश्य के परिप्रेक्ष्य में यह प्रत्यय ही दृष्टा-आत्मा है। वस्तुतः तो अहं-वृत्ति अर्थात् अहं-प्रत्यय स्वयं ही (शुद्ध दृष्टा आत्मा के लिए) दृश्य है, किन्तु प्रमाद अर्थात् दृक्-दृश्य में भेद की सत्यता पर सन्देह न होने के कारण अहं-वृत्ति को दृश्य की आत्मा कहा गया है, जो केवल तदर्थ / तात्कालिक रूप से ही है, न कि सदैव। 

इसलिए इसे प्रत्ययानुपश्यः कहा गया है।

उपनिषद् का अगला मंत्र है :

अनुपश्य यथा पूर्वे प्रतिपश्य तथापरे।। 

सस्यमिव मर्त्यः पच्यते सस्यमिवाजायते पुनः।।६।।

उशन् का मन ही अहं-प्रत्यय की तरह (उससे)  कहता है --

यह जो नित्य मरणशील और नित्य पुनः उत्पन्न होनेवाला मन है, वह मानों अनाज की तरह है, जो अनुकूल ऋतु में उग आता है, और फिर सूखकर नष्ट हो जाता है। 

गीता के अनुसार --

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।।

तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि।।२६।।

(अध्याय २)

इस दृष्टि से अहं-प्रत्यय की निरन्तरता ही अपना अहंकार-रूपी जीव-भाव है। 

फिर भी पिता के वचन को पूर्ण करने के लिए नचिकेता मृत्यु के बारे में शोध करने लगता है। वह स्वेच्छया ही मृत्यु (यम) के द्वार पर जाकर खड़ा हो जाता है। 

तब मृत्यु का देवता यम से उसका मिलना नहीं हो पाता क्योंंकि यम और उसके मध्य तीन रात्रियों की दूरी है। इसे आगे के मंत्रों में स्पष्ट किया जाएगा।

वैश्वानरः प्रविशत्यतिथिर्ब्राह्मणो गृहान्।। 

तस्यैतां शान्तिं कुर्वन्ति हर वैवस्वतोदकम्।।७।।

तब तीन रात्रियों की दूरी मिट जाने पर नचिकेता को यमराज के दर्शन होते हैं। यमदेवता जानते ही हैं और उन्हें स्मरण भी है कि द्वार पर उपस्थित हुआ अतिथि स्वयं अग्नि-देवता हैं अतः उन्हें यथोचित सम्मान पूर्वक पाद्य-अर्घ्य आदि अर्पित करना गृहस्थ का कर्तव्य है। क्योंकि --

आशाप्रतीक्षे संगत्ँ सूनृतां च

इष्टापूर्ते पुत्रपशूँश्च सर्वान्।।

एतद् वृङ्क्ते पुरुषास्यल्पमेधसो

यस्यानश्नन वसति ब्राह्मणो गृहे।।८।।

तिस्रो रात्रीर्यदवात्सीर्गृहे मे

अनश्नन् ब्रह्मन्नतिथिर्नमस्य ।।

नमस्तेऽस्तु ब्रह्मन् स्वस्ति मेऽस्तु

तस्मात् प्रति त्रीन् वरान् वृणीष्व।।९।।

"अर्थात् जिस गृहस्थ के घर पर ब्राह्मण अतिथि भूखा-प्यासा रह जाता है, उसके सभी  यज्ञ याग आदि नित्य, नैमित्तिक आदि कर्म निष्फल हो जाते हैं...।"

वे नचिकेता से कहते हैं :  "हे ब्रह्मन्! आप मेरा कल्याण करें! मेरे अपने प्रमाद से मैं आपका यथोचित सम्मान नहीं कर पाया, जिसके लिए क्षमा करें और तीन रात्रियों तक जो आप मेरे द्वार पर भूखे-प्यासे खड़े रहे, उनसे मुझे जो पाप प्राप्त हुआ, उसके निवारण के लिए मैं आपको तीन वर प्रदान करना चाहता हूँ। कृपया वर गृहण करें!

ये तीन रात्रियाँ ही हमारा (अहं-वृत्ति का) जीवन है।

जागृत, स्वप्न तथा सुषुप्ति इस क्रम-रूपी तीन आत्मा के अज्ञान-रूपी  रात्रियों में सतत गतिशील जीव, यम के द्वार पर ही खड़ा रहता है, किन्तु उनमें से भी बिरला ही नचिकेता जैसा कोई मृत्यु के रहस्य को जानने के लिए उत्सुक और धैर्यशील होता है।

और चूँकि नचिकेता पिता के वचन की रक्षा करने के लिए यम के द्वार पर आया, इसलिए यमराज उसे प्रसन्नता से तीन वर देना चाहते हैं।

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