May 06, 2022

भविष्य का रहस्य

कविता / 06-05-2022

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रहस्य, अभी बरकरार है भविष्य का, 

भविष्य, अभी बरकरार है रहस्य का!

भविष्य, वर्तमान है, अभी अतीत का, 

रहस्य, वर्तमान है, अभी अतीत का।

रहस्य, जो है समय, जो है बस विचार,

भविष्य, जो है कल्पना, वह भी विचार, 

अतीत, जो था स्मृति कभी, वही तो है वर्तमान में, 

स्मृति जो थी अतीत कभी, वही पुनः वर्तमान में।

स्मृति की, भविष्य की, अतीत की भी सत्यता, 

कल्पना की, वर्तमान, कालगत असत्यता,

विचार पर, यद्यपि क्षणिक, ही तो हैं आश्रित सभी,

क्षण यह क्षणिक भी, पुनः विचार पर आश्रित सभी।

यह जो है चक्रव्यूह, और यह जो है प्रपञ्च, 

यही तो है महाभारत, समय ही तो है रंगमञ्च।

बिरला ही कोई, अर्जुन ही इसे सकता है भेद, 

दूसरा कोई भी और, कभी न यह, समझेगा भेद।

हाँ हैं रण में यूँ तो, अभिमन्यु जैसे बहुत सारे,

किन्तु अब तक समय से अन्ततः वे सभी हारे। 

है कुटिल यह समय, अतीत का, भविष्य का, 

कौन है, जो कि भेद पाया, भेद इस रहस्य का।

शकुन-अपशकुन को तो, शकुनि जैसे ही जानते,

युधिष्ठिर भी हैं कहाँ समझे, वे भी कहाँ पहचानते!

कृष्ण भी कुछ करते नहीं, हैं देखते बस मुस्कुराकर,

अन्ततः हैं लौट जाते युद्ध से, हारकर सारे धनुर्धर!

फिर वही अर्जुन है, फिर से उसके वही तो बाण हैं, 

शत्रु है, अतीत, भविष्य, वही तो वर्तमान है! 

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