May 02, 2022

Shun the violence.

Shun the hatred.

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Is the The prevalent and current Neo-slogan (नव-श्लोकम्).

मेरे पास अंग्रेजी / हिन्दी के तीन शब्दकोष हैं। 

एक है कामिल बुल्के का अंग्रेजी-हिन्दी,

दूसरा है अक्षवर्त -- Oxford का Oxford English Learning Dictionary,

और तीसरा है अक्षवर्त का ही हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोष, जिसे कभी कभी इस्तेमाल करता हूँ। 

अब एक नया सूत्र-वाक्य पढ़ा-सुना और प्रचारित किया जा रहा है : "Shun the hatred."

इस सूत्र-वाक्य में बड़ी चतुराई और सफाई से सनातन धर्म की इस मौलिक शिक्षा :

"मा विद्विषावहै।।" 

से, कि हम किसी से द्वेष न करें, ध्यान हटाया जा रहा है।

द्वेष का अर्थ है हिंसा, जो अधर्म का ही प्रकार है। 

किन्तु सीधे सीधे :

"घृणा से बचो, अर्थात् घृणा से दूर रहो,"

यह कहा जाना सुनने में कुछ सुहावना लगता है! 

उपनिषद् का एक शान्तिपाठ है :

सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै।। 

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।। 

इसका तात्पर्य यही है कि हम किसी से और परस्पर भी, द्वेष न करें। क्या घृणा का जन्म द्वेष से ही नहीं होता?

सनातन-धर्म की एक शिक्षा के अनुसार :

विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनी।। 

शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।१८।।

(गीता अध्याय ५)

उपरोक्त श्लोक के अनुसार :

जो वास्तविक पण्डित है ऐसे समदर्शी पण्डित की दृष्टि में विद्या और विनय से युक्त विद्वान और श्रेष्ठ ब्राह्मण, तथा गाय, हाथी, श्वान (कुत्ता) और श्वपच् -श्वानभोजी, चाण्डाल के बीच कोई भेद नहीं होता, क्योंकि वह उन सभी में एक ही परमात्मा का दर्शन करता है। 

सनातन-धर्म की ही दूसरी शिक्षा में ईश्वर के दस अवतारों में से एक अवतार वराह है। वराह (Boar), शूकर के ही समान एक पशु है, और फिर भी अवतार की तरह पूज्य माना जाता है। शिक्षा स्पष्ट है कि हम शूकर की पूजा न भी करें, तो भी उससे घृणा भी न करें।

किन्तु इसका यह आशय यह तो कदापि नहीं हो सकता कि हम हमारे धर्म में निषिद्ध किसी अशुद्ध और अभोज्य वस्तु का सेवन करने लगें। क्या तब हम उन निषिद्ध वस्तुओं तथा उनका सेवन करनेवालों से घृणा करते हैं?

जैसे गोमांस का सेवन करना सनातन-धर्म को माननेवाले किसी भी व्यक्ति के लिए महापाप है, किन्तु फिर भी हम गाय की पूजा करते हैं और वह इसीलिए भी कि उपरोक्त वर्णित श्लोक में उसे ब्राह्मण (मनुष्य) और हाथी की तरह शाकाहारी, अहिंसक पशु की ही श्रेणी में माना जाता है। किन्तु चूँकि हमारे धर्म की शिक्षा के अनुसार श्वान मांसाहारी होता है (और शायद इसलिए विज्ञान भी उससे सावधान रहने का सुझाव देता है) हम श्वान से यद्यपि  घृणा नहीं करते किन्तु उससे सुरक्षित दूरी अवश्य ही रखते हैं, और उसके मांस का सेवन करने की तो हम कल्पना तक नहीं कर सकते। श्वान के मांस का भी कुछ लोग सेवन करते हैं और उनकी ही तरह कुछ मांसाहारी लोग शूकर के मांस का भी सेवन करते हैं। क्या वे शूकर से घृणा करते हैं?

अतः किसी से भी घृणा (hatred) करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। किन्तु सनातन-धर्म की शिक्षा, जिसके अनुसार अहिंसा ही धर्म का प्रथम आधार है, -- हमें हिंसा (violence) करने से तो अवश्य ही बचना चाहिए। यहाँ हिंसा का तात्पर्य है, -द्वेष या मनोरंजन के उद्देश्य से की जानेवाली अनावश्यक हत्या या मार-काट, या किसी को इस तरह से पीड़ित करना।

इसलिए ,"घृणा से परहेज करें" -- "Shun the hatred" यद्यपि अपनी जगह सराहनीय तो है किन्तु यह पर्याप्त नहीं है, और उसके निहितार्थों की अवहेलना नहीं की जा सकती है।

शाकाहारियों के लिए इसका क्या महत्व है कि मांस किस पशु का है, या किस तरीके से उसका वध किया गया है! 

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