यम से प्राप्त प्रथम और द्वितीय वर
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शान्तसंकल्पः सुमना यथा स्याद्वीतमन्युर्गौतमो माभि मृत्यो।।
त्वत्प्रसृष्टं माभिवदेत्प्रतीत एतत्त्रयाणां प्रथमं वरं वृणे।।१०।।
नचिकेता यमराज से प्रथम वर यह माँगता है कि वे पुनः उसका पहले की तरह स्वस्थ स्वरूप में सृजन करें, और उसे यमलोक से सकुशल लौटकर आया हुआ देख कर उसके पिता ग्लानि, क्षोभ और उद्वेग से रहित होकर शान्त और प्रसन्न-मन हो जाएँ।
"हे मृत्यु! जिसे मैं आपसे प्राप्त करूँ, उन तीन वीरों में से मेरा प्रथम वर तो यही है, कि मेरे पिता मुझे पुनः पहले की ही तरह जीवित देखें, और इससे उन्हें प्रसन्नता प्राप्त हो, उनकी चिन्ता और शोक समाप्त हों।"
तब यमराज ने उसे इस प्रकार तथास्तु कहा :
यथा पुरस्ताद् भविता प्रतीत
औद्दालकिरारुणिर्मत्प्रसृष्टः।।
सुख्ँ रात्रीः शयिता वीतमन्युः-
स्त्वां ददृशिवान्मृत्युमुखात्प्रमुक्तम्।।११।।
"नचिकेता! मैं तुम्हें प्रथम वर यह प्रदान करता हूँ कि मुझ मृत्यु के मुख से तुम्हें सकुशल लौटकर आया हुआ देख, उद्दालक के पुत्र, तुम्हारे पिता आरुणि, शोक, दुःख आदि से निवृत्त होकर शेष रात्रियों में सुखपूर्वक सोया करेंगे।"
तब यमराज से नचिकेता द्वितीय वर माँगते हुए कहता है :
स्वर्गे लोके न भयं किञ्चनास्ति
न तत्र त्वं न जरया बिभेति।।
उभे तीर्त्वाशनायापिपासे
शोकातिगो मोदते स्वर्गलोके।।१२।।
स त्वमग्निं स्वर्गमध्येषि मृत्यो
प्रब्रूहि त्व्ँ श्रद्दधानाय मह्यम्।।
स्वर्गलोका अमृतत्वं भजन्त
एतद् द्वितीयेन वृणे वरेण।।१३।।
नचिकेता यमदेवता से कहता है :
"स्वर्ग लोक में कोई भय नहीं होता। वहाँ न तो मृत्यु का, अर्थात् न तो आपका और न ही बुढ़ापे का भय सताता है। न तो भूख का, और न ही प्यास का कष्ट वहाँ होता है। और इस तरह कष्टों से मुक्त, शोक से रहित होकर केवल आमोद प्रमोद ही होता है।
हे मृत्यो! आप तो स्वर्ग (की प्राप्ति) की विद्या को भली प्रकार से जानते हैं। इसलिए आप मुझ श्रद्धावान् के लिए उसका उपदेश कीजिए, क्योंकि स्वर्ग लोक की प्राप्ति कर लेनेवाला अमर हो जाता है और अमृतत्व का उपभोग करता हुआ सदा सुखी होता है। मैं यही द्वितीय वर आपसे माँग रहा हूँ।"
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