May 17, 2022

विवृतं और अपावृतम्

कठोपनिषद् --

एतच्छ्रुत्वा संपरिगृह्य मर्त्यः

प्रवृह्य धर्म्यमणुमेतमाप्य।।

स मोदते मोदनीय्ँ हि लब्ध्वा

विवृत्ँ सद्म नचिकेतसं मन्यते।।१३।।

(अध्याय १, वल्ली २)

के माध्यम से महाराज यमराज नचिकेता से कहते हैं कि मैंने तो नाचिकेत-अग्नि रूपी स्वर्ग्य-विद्या के अनुष्ठान के द्वारा यमलोक के अधिष्ठाता होने के गौरव की प्राप्ति कर ली, किन्तु नचिकेता, तुम तो किसी भी प्राप्ति के लोभ से मोहित नहीं हुए और तुमने सीधे ही उस तत्त्व उस परम धाम को जानने की जिज्ञासा की जो सभी अनित्य लोकों से उच्चतर है। 

इसकी तुलना गीता के निम्न श्लोक :

यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्।।

सुखिनः क्षत्रियाः  पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।।३२।।

(अध्याय २)

से करने पर यह कहा जा सकता है, कि भगवान् श्रीकृष्ण ने भी इसी प्रकार अर्जुन को, उसकी पात्रता देखते हुए, युद्ध उसका अभीष्ट कर्तव्य है, ऐसी शिक्षा दी थी। 

अर्जुन और यूद्ध के संदर्भ में परिस्थिति भिन्न थी, और अर्जुन के लिए उस समय यही उचित था, कि वह संशयरहित होकर युद्ध करने में संलग्न हो जाए।

अर्जुन के लिए दो ही विकल्प थे -- स्वर्ग या भूमि का राज्य।

नचिकेता के लिए ऐसा कोई प्रश्न था ही नहीं ।

अतः नचिकेता की पात्रता के अनुसार यमराज उसकी प्रार्थना के उत्तर में कहते हैं --

सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति

तपान्सि सर्वाणि च यद्वदन्ति।।

यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति

तत्ते पद्ँ सङ्ग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत्।।१५।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली २)

सर्वे वेदाः यत् पदं आमनन्ति तपान्सि सर्वाणि च यत् वदन्ति। यत्-इच्छन्तः ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत् ते पदं सङ्ग्रहेण ब्रवीमि ... ... ॐ इति एतत्।।

इसके ही तुल्य हैं, - गीता के अध्याय ८ के निम्न तीन श्लोक :

यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः।। 

यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं सङ्ग्रहेण प्रवक्ष्ये।।११।।

सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।। 

मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणम्।।१२।।

ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।।

यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।१३।।

कठोपनिषद् में आगे चलकर बाद में यह भी बताया गया है कि इस प्रकार की मृत्यु होने पर यद्यपि परम गति अवश्य प्राप्त हो जाती है, किन्तु ब्रह्मज्ञान और आत्म-ज्ञान में क्या समानता और / या भिन्नता हो सकती है? इस बारे में अध्याय २, वल्ली ३ के अन्तिम तीन मंत्रों में स्पष्टता से वर्णित किया गया है। 

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