कविता / 06-05-2022
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जिन्दगी की पहेली को बूझती है,
जब कविता, अचानक सूझती है,
ज़रूरी नहीं है, कि जीत ही जाए,
हार भी जाती है, लेकिन जूझती है।
कोई पत्थर हो, या पत्थर-दिल,
जिसे भी माने, दिल से पूजती है।
भोर हो जाने से जरा पहले जैसे,
कोई चिड़िया अचानक कूजती है।
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या
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