DRONE!!
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द्रोण का आगमन हो चुका है,
दे रहे हैं राजपुत्रों को धनुर्विद्या!
हो रहे हैं उद्यत, राजपुत्र वीर!
फिर कोई महाभारत होगा क्या!
यदि हुआ भी तो फिर से,
क्या अर्जुन को होगा विषाद?
फिर से उसे क्या करेंगे दूर,
देकर कृष्ण, उपदेश-प्रसाद?
क्या महाभारत कभी भी,
होता है सदा, द्वापर में ही?
या सतत होता है रहता,
मनुष्य के मन में ही?
है, यही यदि काल-क्रम,
तो क्या है अपना कर्तव्य?
क्या पलायन करें इससे,
या होकर देखें तटस्थ!
संसार में तो युद्ध है,
तटस्थ तो बस बुद्ध है,
चित्त-मन यदि शुद्ध है,
नहीं मार्ग, अवरुद्ध है!
प्रकृतिः त्वां नियोक्ष्यति,
प्रकृति ही करेगी नियुक्त,
कर्तव्य का पालन करो,
भय-संशय से होकर मुक्त!!
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