विचिकित्सा या इयम्
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यमराज ने जब नचिकेता से उनके द्वारा उसे दिए जानेवाले उस तीसरे वर के बारे में अपनी इच्छा प्रकट करने के लिए कहा, तो उसने कहा --
येयं प्रेते विचिकित्सा मनुष्ये-
ऽस्तीत्येके नायमस्तीति चैके।।
एतद्विद्यामनुशिष्टस्त्वयाहं
वराणामेष वरस्तृतीयः।।२०।।
"मनुष्यों में मृत्यु-विषयक जो यह शंका है, और जिससे प्रेरित हो वे परस्पर एक दूसरे से इस बारे में सतत यह विवाद करते रहते हैं, कि क्या मृत्यु हो जाने के बाद जीवन किसी रूप में विद्यमान रहता है या नहीं रहता, कुछ मानते हैं कि रहता है जबकि कुछ यह मानते हैं कि ऐसा कोई जीवन शेष नहीं रहता, इस विषय में सत्य क्या है इसे आपसे जानने का इच्छुक हूँ, कृपया यह रहस्य क्या है, इसकी शिक्षा मुझे प्रदान करें। यही मेरे द्वारा चाहा गया तीसरा वर है।"
तब यमराज बोले --
देवैरत्रापि विचिकित्सितं पुरा
न ही सुविज्ञेयमणुरेष धर्मः।।
अन्यं वरं नचिकेतो वृणीष्व
मा मोपरोत्सीरति मा सृजैनम्।।२१।।
यमराज ने कहा --
"पुरातन काल में देवताओं के मन में भी यह प्रश्न पैदा हुआ था, और वे यद्यपि जानते थे कि यज्ञों आदि कर्मों का विशिष्ट प्रकार से अनुष्ठान किए जाने पर मनुष्य को स्वर्ग आदि लोक प्राप्त हो सकते हैं, जहाँ उसे देवतुल्य, अबाध सुख, भोग और विलास के साधन प्राप्त हो सकते हैं, किन्तु उन्हें यह भी पता था कि उनके पुण्य क्षीण होते ही उन्हें पुनः मृत्युलोक में जन्म लेना पड़ता है। परन्तु फिर भी उन्हें इस विषय में अनिश्चय ही था कि मृत्यु हो जाने के बाद क्या कोई जीवन होता है? इस तत्व का कण-मात्र भी समझ पाना बहुत दुष्कर है। इसलिए नचिकेता! तुम इस वर को छोड़ ही दो और इसके बदले कोई अन्य वर मुझसे माँग लो। और तुम मुझ पर इसके लिए दबाव मत डालो!"
किन्तु नचिकेता भला पीछे कैसे हटता! उसने पूछा और आग्रह भी किया :
देवैरत्रापि विचिकित्सितं किल
त्वं च मृत्यो यन्न सुविज्ञेयमात्थ।।
वक्ता चास्य त्वादृगन्यो न लभ्यो
नान्यो वरस्तुल्य एतस्य कश्चित्।।२२।।
"हे मृत्यु! मैं मानता हूँ कि पूर्वकाल में देवताओं ने भी इस प्रश्न पर बहुत विचार विमर्श और इसकी विवेचना (विचिकित्सा -- विश्लेषण आदि से समाधान पाने की चेष्टा) अवश्य ही की होगी, और यह भी इतना ही सुनिश्चित और सत्य है कि इस विषय को बहुत अच्छी तरह जाननेवाले एकमात्र आप ही हैं। इस विषय का न तो आपके जैसा कोई अन्य ज्ञाता है, और न ही ऐसा कोई वक्ता कभी प्राप्त हो सकता है। फिर यह भी सत्य है कि, इसके तुल्य, इसके समान कोई दूसरा वर हो भी नहीं सकता!"
तब यमराज नचिकेता को बहुत से प्रलोभन देने लगते हैं --
शतायुषः पुत्रपौत्रान् वृणीष्व
बहून् पशून् हस्तिहिरण्यमश्वान्।।
भूमेर्महदायतनं वृणीष्व
स्वयं च जीव शरदो यावदिच्छसि।।२३।।
एतत्तुल्यं यदि मन्यसे वरं
वृणीष्व वित्तं चिरजीविकां च।।
महाभूमौ नचिकेतस्त्वमेधि
कामानां त्वा कामभाजं करोमि।।२४।।
ये ये कामा दुर्लभा मृत्युलोके
सर्वान् कामाँश्छन्दतः प्रार्थयस्व।।
इमा रामाः सरथाः सतूर्या
न हीदृशा लम्भनीया मनुष्यैः।।
आभिर्मत्प्रत्ताभिः परिचारयस्व
नचिकेतो मरणं मानुप्राक्षीः।।२५।।
यमराज ने नचिकेता से कहा --
"नचिकेता! तुम मुझसे सौ वर्षों की आयुवाले बहुत से पुत्रपौत्र आदि माँग लो, अनेक पशु, हाथी, स्वर्ण और अश्व इत्यादि माँग लो, बहुत बड़ी भूमियाँ भी माँग लो, और यदि चाहो तो अपने लिए मनचाही आयु तक जीवन जीने का वर भी प्राप्त कर लो। और यदि तुम इस वर को इसके समान समझते हो तो बहुत सा धन, चिरंजीवी होने का वर भी माँग लो, तुम पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट हो जाओ, और जो जो कामनाएँ तुम पूर्ण करना चाहो उन सबका भोग करने में समर्थ होने के लिए मैं तुम्हें सामर्थ्य भी दे सकता हूँ। मनुष्यलोक में जो कामनाएँ दुर्लभ समझी जाती हैं, उनके पूर्ण होने का वर अपनी इच्छा के अनुसार माँग लो। सुन्दर स्त्रियाँ, बड़े विशाल रथ, गीत-संगीत के वाद्य और साधन, इस प्रकार की वस्तुएँ मनुष्यों को कभी प्राप्त नहीं होती हैं। मेरे द्वारा प्रदत्त इन विविध वस्तुओं का स्वेच्छानुसार उपभोग करो, किन्तु मुझसे यह न पूछो कि मृत्यु के बाद (मनुष्य का) क्या होता है, (या कि उसकी क्या गति होती है!)
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