कविता / 10-05-2022
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यह अच्छा ही है कि, हर रोज, नया कुछ होता है,
पल भर पहले तक, जिसका पता नहीं होता है!
सुख हो या हो दुःख, ग़म या कि फिर हो खुशी,
एकाएक, अकस्मात् जो होता है, बस होता है!
चिन्ता, फिक्र, उदासी सारी ही मिट जाती है,
जीवन में कौतूहल, रोमाञ्च, यही तो होता है,
हाँ यह ज़रूर है, कुछ चीज़ें अपनी खो जाती हैं,
लेकिन और नयी भी तो कुछ मिल ही जाती हैं,
जिसका नहीं ख़याल था कभी, वह हो जाता है,
नहीं ख्वाब में भी देखा जो, वह भी हो जाता है!
लोग नये आते हैं कुछ, और चले भी जाते हैं,
दुश्मन दोस्त हो जाते हैं, और कुछ खो जाते हैं!
इस सबमें वह है कौन, कि जो अपना होता है!
यह सब होना, क्या बस कोरा सपना होता है?
फिर क्यों तलाश होती है, सबको अपनों की,
फिर क्या सचमुच, है जरूरत भी, इन सपनों की?
सिलसिला कहाँ से शुरू हुआ, पता नहीं होता है,
यह अच्छा ही है कि हर रोज, नया कुछ होता है!
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