कविता : 29-08-2021
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एक लंबा इंतजार बीत गया,
प्रतीक्षा भी एक पूरी हो गई!
कल तक जो थे बहुत क़रीब,
उनसे आज बहुत दूरी हो गई!
लोग आते हैं, और जाते रहते हैं,
हरेक शख्स का है क़िरदार अपना,
किसी से किसी का रिश्ता कहाँ,
न कोई पराया है, न कोई अपना।
बदल जाता है माहौल, मौसम,
बदल जाते हैं, दोस्त और दुश्मन,
बदल जाता है यह शरीर, मन,
बदल जाता है पूरा ही जीवन!
फिर कैसे पहचानें उसको,
जिसका सब कुछ बदल गया,
क्या वह खुद भी बदल चुका?
कैसे जानेगा फिर खुद को?
मुश्किल है या, आसान है क्या?
है सवाल यह अजीब कितना!
कर पाओ अगर हल इसको,
मुझको भी तुम समझा देना!
***
अगर मैं सचमुच बदल गया,
तो कैसे जान सकूँगा इसको!
अगर मैं सचमुच बदल गया,
कौन बतला पाएगा मुझको?
***
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