तात्पर्य और तात्पर्यबोध
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हिन्दी में शायद इसे 'अर्थ और अर्थबोध', या 'भाव और भावार्थ-बोध' भी कहा जा सकता है।
मुझे नहीं पता कि किसी भाषा के साहित्य के मूल्यांकन के इस आधार पर हिन्दी भाषा के साहित्य में क्या कुछ लिखा गया है, या इस बारे में अध्ययन और शोध किया गया है।
किन्तु यह अवश्य महसूस होता है कि हिन्दी (या किसी भी भाषा) के साहित्य के मूल्यांकन का यह एक महत्वपूर्ण आधार हो सकता है, क्योंकि इसी आधार पर आलोचना और समीक्षा के परिप्रेक्ष्य बदल जाते हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि लेखक, कवि, आलोचक, पाठक या समीक्षक, प्रत्येक मनुष्य के भीतर अपनी भाषा की अपनी ही एक अलग समझ होती है, जिससे वह उस भाषा के साहित्य का तात्पर्य ग्रहण करता है । अंग्रेजी साहित्य में शायद इसे ही :
"Sense and Sensibility"
के अंतर्गत अभिव्यक्त किया जाता है।
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