कविता : 02-08-2021
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मोड़
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तुम आखिर को रुक जाओगे,
चलते चलते थक जाओगे,
मंजिल शायद ही मिल पाए,
कहीं ना कहीं बहक जाओगे!
रहता है ग़म साथ हमेशा,
अपना ही ग़म भी काफी है,
और किसी का ग़म लेकर,
खुद को ही और सताओगे!
कोई कब तक साथ चलेगा,
सबकी अपनी अपनी मंजिल,
तुम भी कुछ आगे चलकर,
किसी मोड़ पर मुड़ जाओगे!
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