August 20, 2021

जो अब बीत गई!

कविता : 20-08-2021

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यह ऋतु तो अब बीत गई,

किन्तु पुनः फिर आएगी, 

किन्तु रहेंगे क्या हम तब भी, 

जब फिर से यह आएगी! 

वैसे तो कुछ विदित नहीं हैं, 

नियति और प्रकृति के कार्य,

किन्तु काल भी है वैसा ही, 

निपट अनिश्चित अपरिहार्य। 

नहीं किसी पर करुणा करता, 

नहीं किसी से भेदभाव,

जिसका जब होता है तत्क्षण,

उसके हर लेता है प्राण । 

निष्ठुर नहीं, कुशल होता है,

नित वह निज कर्तव्य में दक्ष,

जैसा भी होता है प्रस्तुत, 

जो भी अवसर उसके समक्ष।

मनुज नहीं कर सकता गर्व, 

मनुज नहीं कर सकता दर्प, 

चाहे करता रहे प्रमाद, 

काल सदा रखता है याद।

यह ऋतु जैसे उसके साथ,

सदा पकड़कर उसका हाथ,

आती जाती रहती है पर, 

नहीं बदलती उसके साथ।

यह ऋतु तो अब बीत गई! 

***

 





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