कविता : 02-08-2021
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है ये रेगिस्तान जिसमें,
ऊँट हैं, और ठूँठ हैं,
और हरियाली, ये पानी,
हैं जो, झूठ-मूठ हैं!
दूर तक है सिर्फ रेत,
जैसे कोई बंजर खेत,
पास हैं बबूल ताड़,
जैसे काँटों की है बाड़!
रेत के उस पार से,
कौन आता जाता है,
किसका रेगिस्तान से,
रिश्ता या कोई नाता है!
एक खालीपन है बस,
दूर तक फैला हुआ,
और सन्नाटा है बस,
हर तरफ चुभता हुआ!
हाँ जरा सी देर को,
मन ये जाता है बहल,
डूबता है याद में जब,
कोई करता है पहल!
गूँजता है सूनापन,
वरना तो सब व्यर्थ है,
यही है जीवन यहाँ,
बस यही तो अर्थ है!
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