August 12, 2021

आजकल सन्त कहाँ...

मिलते हैं?

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आजकल सन्त कहाँ मिलते हैं, 

मिल भी जाए तो पहचानेंगे कैसे?

आजकल गुरु कहाँ मिलते हैं? 

मिल भी जाए तो समझेंगे कैसे?

आजकल देवता कहाँ मिलते हैं?

मिल भी जाएँ तो पूजेंगे कैसे?

अनेक प्रश्न उठा करते हैं मन में, 

पर पता भी नहीं है कि पूछेंगे किससे!

बहुत किताबें हैं, बहुत से उपदेशक,

अनेक परंपराएँ हैं! तथा मार्गदर्शक!

पता ही नहीं है इनमें से कौन झूटा है,

पता ही नहीं है कि इनमें कौन सच्चा है, 

कितनी दुविधा से भरा हुआ है जीवन यह,

यहाँ बुरा है क्या, सही-गलत, क्या अच्छा है!

क्या इस का हल भी है किसी के भी पास? 

है भी अगर, तो कैसे करें उस पर विश्वास !

तो क्या भटकते ही रहें उम्र भर ही हम, 

इसी दुविधा में बीत जाए  क्या उम्र ही पूरी?

कोई तो राह हो जो कि दे सके हमको,

ऐसी मुश्किल में जो, क्या नहीं है जरूरी! 

खुद ही क्या खोज सकते नहीं हैं हम, 

हो अगर ऐसी तो कौन सी वो सकती है! 

और अगर नहीं है, तो और कोई राह नहीं,

यहाँ नहीं, वहाँ भी नहीं, कहीं भी नहीं! 

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सवाल यह भी तो है कि आखिर क्यों हमको,

तलाश है किसी सहारे या किसी मददगार की,

क्या इसीलिए नहीं कि तमाम दौलतें मिलें हमको,

हमें निजात मिले, मुसीबतों से, रोग,  बीमारी से, 

हमें हमेशा जीत ही मिले, उन तमाम दुश्मनों पर,

जो चाहते हैं कि हमें कहीं न चैन या सुकून मिले!

तो क्या आदमी हमेशा ही जीता रह सकता है? 

क्या हमेशा ही बना रहे जवान, ताकत से भरपूर,

न उसे मौत आए कभी और न हो बूढ़ा भी कभी,

क्या ये उम्मीद कुछ ज्यादा ही नहीं लगती है!

क्या कोई सन्त, भगवान, खुदा, देवता या फकीर,

तुमको ऐसा भी कोई तोहफ़ा कभी दे सकता है?

और अगर दे भी सकता हो तो तुम क्या दोगे?

इसकी कीमत कोई, क्या कभी भी दे सकते हो?

फिर क्यों इतना गुमान, इतना ग़रूर, इतनी अकड़, 

जबकि यह तय है कि एक दिन मौत का भी है तय,

और अगर इतना भी समझ लो तो वही काफी है, 

इस जहाँ में और बाद के जहाँ में भी जीने के लिए!

और तब क्या जरूरत होगी भगवान या सन्त की भी, 

जब तुम्हें दुनिया से रहेगी ही नहीं उम्मीद कोई,

तब रहेगा सुकूँ दिल में जब न होगी वहाँ चाहत कोई! 

उस घड़ी तक तो रहेगी ही दुनिया भी और दुविधा भी, 

रहेगा असमंजस, तकलीफ यह, परेशानी भी! 

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हाँ,  अभी कुछ एडिटिंग करना बाकी है! 

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2010 में लिखी 'फ़िर एक बार' लेबल पर उपलब्ध कविता में भूल से नागों की माता का नाम 'विनता' लिख दिया है। 

पौराणिक आख्यान के अनुसार, 'विनता' तो, वैनतेय की माता का नाम है, जबकि 'कद्रु' नाम नागों की माता का है।

अभी अभी ही इस ओर मेरा ध्यान गया! 

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