कविता : 07-08-2021
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अपराध-बोध
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जीने में अपराध-बोध,
लेकिन किसको होता है?
कौन जागता है सोयों में,
और कौन यह सोता है?
(य एषः सुप्तेषु जागर्ति... / य एष सुप्तेषु जागर्ति...)
सुख में तो सब ही हँसते हैं,
मगर कौन रोता है?
कौन सोचता है सुख-दुःख भी,
आखिर किसको होता है!
"मैं सोचूँगा", "मैंने सोचा",
हर कोई तो कहता है,
"लेकिन मुझमें कौन सोचता",
ऐसा किसको लगता है?
कौन सोचता है, जो कहता,
कौन मौन हो रहता है?
कौन जानता है पर उसको,
मन में मौन जो रहता है?
मैं मन हूँ या मन है मैं,
कैसा दोनों का नाता है?
ऐसा भी ख्याल क्या लेकिन,
कभी किसी को आता है?
लेकिन जिसको भी आता हो,
क्या वह कोई मन है या मैं,
या वह बस देखा करता है,
जैसे हो साक्षी, पर ना मैं!
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