August 11, 2021

सवाल, कुछ लिखने का!

कविता 11-08-2021

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अब मुझे लगता है, कुछ और न लिखूँ, 

हाँ, मुझे लगता है, कुछ और न दिखूँ! 

हाँ जो दिखता है,  वही तो बिकता है, 

अब तक बिका, अब आगे, और न बिकूँ!

सोचता हूँ लिखने को कैसे रोक सकता हूँ, 

पर नहीं लिखना है, छपने के लिए, 

बाजार में हो, जिसकी माँग बन वो सनसनी,

ज़हरीली, भड़काऊ, बिकने-खपने के लिए!

लिखना तो वैसे खून में है, उसकी रवानी है, 

लिखूँगा जब तक न मेरा खून पानी है, 

वैसे हर अदीब की ही यह कहानी है, 

बस यही तो मेरी अपनी भी निशानी है!

अब न लिखना है मुझे रूमानी कुछ,

अब न लिखना है मुझे बेमानी कुछ,

अब न लिखना है मुझे ईनामी कुछ, 

अब तो लिखना है मुझे ईमान कुछ! 

अब न मैं कुछ कभी, बेईमानी लिखूँगा,

हाँ ये लगता है अब कुछ और न लिखूँगा!

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