August 01, 2021

उंगली

कविता : 01-08-2021

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याद की उंगली पकड़कर ही तो था चलता रहा, 

सुख-दुःख की गलियों में ही तो भटकता ही रहा! 

याद की उंगली भी वह जो, छूट गई पर आखिर,

पहचान सुख-दुःख की भी मेरी मिट गई आखिर,

मगर पहचान और फिर भी जो बाकी रही थी,

साथ ही अपनी वह पहचान मिट गई आखिर!

मुमकिन नहीं है पूछना भी अब किसी से,

मैं ही नहीं, दुनिया भी खो गई आखिर!

लेकिन कहाँ है अब परेशानी भी कोई,

हर परेशानी भी खो ही गई आखिर!

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