कविता : 05-09-2021
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लाचारी
सब थके थके हुए से हैं, लेकिन लड़ाई जारी है!
कुछ मर गए, कुछ घायल, बाक़ी सब की बारी है!
फिर नई कुमुकें आ रहीं हैं, तैयार हो रहे हैं जवान!
फिर खून में आया है उबाल, बारूद में चिनगारी है!
हर कोई लड़ रहा है यहाँ, हर कोई हर किसी के साथ,
हर शख्स यहाँ है सरफरोश, जान दे देने की तैयारी है!
देखनेवाले हैं फिक्रमंद, मगर क्या करें, देखने के सिवा,
करने के लिए कुछ भी तो नहीं, बेवजह ही बेद़ारी है!
आज के वक्त का यह दौर कितना क़ातिल है, बेहूदा भी!
कहाँ जाकर के कब ख़त्म होगा, जीते रहना पर लाचारी है!
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