September 28, 2021

संशय, भ्रम और मोह

ग्रीक दर्शन और भारतीय दर्शन

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किसी ग्रीक चिन्तक ने कहा था :

मनुष्य ने विवाह अवश्य करना चाहिए। यदि स्त्री भली मिली तो  मनुष्य का जीवन सुखी हो जाएगा, यदि स्त्री कर्कश मिली तो मनुष्य विचारक हो जाएगा। 

इसलिए ग्रीक दर्शन विचार का अतिक्रमण नहीं कर पाता। 

भारतीय दर्शन विचार का अतिक्रमण कर उस चेतना के बारे में अनुसंधान करता है, जहाँ से विचार का आगमन और पुनः जहाँ विचार का लय हो जाया करता है। 

उपरोक्त ग्रीक विचारक को पुरुषवादी चिंतक कहा जा सकता है। किन्तु भारतीय दर्शन के अनुसार वैसे तो मनुष्यमात्र जन्म से ही सम्मोह से, अर्थात् भ्रम और मोह की बुद्धि से युक्त होता है, किन्तु फिर भी पुरुष की बुद्धि प्रधानतः संशय से युक्त और स्त्री की बुद्धि मोह से युक्त होती है। गीता के अध्याय ७ के अनुसार :

इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वंद्वमोहेन भारत ।

सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ।।२७।।

इसलिए विवाह का सुख-दुःख से कोई निश्चित संबंध है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। विवाह की वैदिक अवधारणा या विधान का प्रयोजन है सृष्टि के कार्य के यंत्र के रूप में प्रजा की सतत वृद्धि को सुनिश्चित करना। एक ओर अपनी जाति और वर्ण की शुद्धता तो दूसरी ओर वर्णाश्रम धर्म के अनुसार जीवन का श्रेय प्राप्त करना। इस प्रकार विवाह कर्तव्य-बुद्धि से किया जानेवाला कार्य है, न कि केवल कामोपभोग के उद्देश्य से किया जानेवाला कोई कार्य।

गीता के इसी अध्याय ७ के एक श्लोक में इसे भी स्पष्ट किया गया है  :

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् ।

धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ।।११।।

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