September 19, 2021

गणपति बप्पा मोर्या!!

।। श्रीगणेशाय नमः ।।

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भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन भगवान् गणेश का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। 

इसके पहले हरितालिका की तृतीया तिथि के दिन माता पार्वती की प्रिय सखी प्रकृति ने निर्जला व्रत रखकर भगवान् शिव की आराधना की थी। 

प्रकृति के तमोगुण की प्रतिमा ही वह मृदा-मूर्ति थी जिसे माता प्रकृति ने स्वयं के और परमेश्वर शिव के मध्य की यवनिका (पर्दे) के रूप में जब  स्थापित किया था और अकस्मात् भगवान् शिव समाधि से जाग्रत होकर जगत् के दृश्य को देखने के कौतूहल से उस स्थान पर आए जहाँ माता प्रकृति परमेश्वर के दर्शन के लिए स्नान कर स्वच्छ और पवित्र होने का यत्न कर रही थी। वैसे माता प्रकृति पार्वती की ही छाया थी किन्तु उस छाया अस्तित्व को पार्वती ने अपने चिति (भान) का प्रकाश देकर स्वतंत्र और चेतन शक्ति में परिणत कर लिया था और इसलिए उस प्रकृति में मन, बुद्धि, भावना और हृदय का आभासी उन्मेष हो उठा था।इस प्रकार माता पार्वती ने अपने ही जैसी एक स्त्री को अपनी सखी अर्थात् अलि / अलिका के स्वरूप में अव्यक्त से चुराकर (हरित) व्यक्त अस्तित्व में परिणत कर लिया था। 

उसी व्यक्त अस्तित्व के रूप में प्रकृति माता ने भाद्रपद मास की तृतीया अर्थात् हरितालिका तीज को भगवान् शिव को प्रसन्न करने की कामना से निर्जल व्रत का अनुष्ठान किया था । जल से रहित होकर वह शुष्क मिट्टी की अस्पष्ट मूर्ति में ढल गई थी। 

तब माता पार्वती ने उससे कहा :

"मैं समाधि की प्राप्ति के लिए योगाभ्यास कर रही हूँ तुम द्वार पर सावधानी से खड़े रहना ताकि कोई बाह्य विषय मेरी इन्द्रियों को तथा उस माध्यम से मेरे मन को, मन के माध्यम से बुद्धि को, तथा बुद्धि के माध्यम से मेरी आत्मा को न तो छू सके और न ही हर सके।"

"जो आज्ञा!"

कहकर मिट्टी का वह पिण्ड द्वार पर दृढता से खड़ा रहा। 

समाधि से उठकर जब भगवान् शिव ने माता पार्वती को देखना चाहा तो वह पिण्ड पत्थर की दीवार की तरह, माता पार्वती तथा पिता परमेश्वर भगवान् शिव के बीच बाधा बनकर खड़ा हो गया। 

तब भगवान् शिव ने खड्ग से उस पिण्ड पर वार किया जिससे उसका मस्तक धड़ से अलग होकर कटकर गिर गया। तब माता पार्वती के अनुरोध पर उसे जीवित करने हेतु भगवान् शिव ने एक गजशावक का सिर काट लिया जिसकी माता उसकी ओर पीठ किए सो रही थी। 

मिट्टी के पिण्ड के मस्तक के स्थान पर उस सिर को स्थापित किए जाते ही वह पिण्ड प्राण और चेतनायुक्त प्रतिमा की तरह जाग उठा।

इस प्रकार प्रकृति के तमोगुण (मिट्टी) तथा रजोगुण (पशुवृत्ति)  के पश्चात् उस पिण्ड में सतोगुण का आविर्भाव हुआ, जो क्रमशः माता पार्वती की ही तीन शक्तियों, आवरण, विक्षेप, तथा अनुग्रह रूपी शक्तियों की अभिव्यक्ति थे । 

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की तिथि के दिन बुद्धि के स्वामी भगवान् गणेश का आगमन उस रूप में हुआ।

दस दिनों तक उन्होंने भक्तों की पूजा आदर स्वीकार किया और उनके कष्टों तथा अज्ञान, मोह तथा मद, एवं दारिद्र्य और शोक को हर लिया और अनन्त चतुर्दशी की तिथि को भक्तों से विदा लेकर अपने निज धाम लौट गए।

तब से प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि से चतुर्दशी तिथि तक भगवान् श्रीगणेश के गणेशोत्सव का यह पर्व मनाया जाता है।

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पुढच्या वर्षी लौकर या! 

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हार्दिक शुभकामनाएँ! 

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