कविता : 16-09-2021
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मोहन के दो आगे मोहन,
मोहन के दो पीछे मोहन,
बोलो, कितने मोहन!
एक ने जन्म लिया कारा में,
देवकी वसुदेव के पुत्र,
माता यशोदा ने पाला उनको,
गोप गोपियों के थे मित्र,
गीता-ज्ञान दिया अर्जुन को,
राधा और मीरा के इष्ट,
कुन्ती के तो थे परमेश्वर,
सब अवतारों में हैं विशिष्ट,
एक ने जन्म पोरबन्दर में,
लेकर, राष्ट्र को किया स्वतन्त्र,
अंग्रेजों से मुक्त किया,
मातृभूमि जब थी परतन्त्र!
नर-नारी के भेद भाव का,
छुआ-छूत का किया विरोध!
ऊँच-नीच का जात-पाँत का,
तोड़ कुरीति, किया निषेध!
सत्य का साहस, और आग्रह,
इतना दृढ़, इतना उत्साह,
किए प्रयोग ब्रह्मचर्य के,
नहीं हुआ कोई संकोच!
एक हुए भागवत मोहन,
नित शाखा में जाते थे / हैं,
'नमस्ते! सदा वत्सले मातृभूमे'!
सुबह-शाम को गाते हैं!
संस्कृति और मर्यादा का भी,
करते हैं आदर-सम्मान !
राष्ट्रधर्म के प्रबल समर्थक,
परंपरा का, कर निर्वाह!
मोहन के ये रूप अनेक,
एक से बढ़कर सारे एक!
परस्पर इनकी क्या तुलना,
आकाश के ये तारे अनेक!
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