September 12, 2021

किसी की याद

कविता :12-09-2022

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किसी की याद कब आती है,

किसी की याद क्यों आती है, 

क्या किसी की याद आती है, 

ये भी तो पूछो, किसे आती है!

जब भूल जाता है कोई खुद को,

क्यों भूल जाता है कोई खुद को, 

कब भूल जाता है कोई खुद को,

ये भी तो पूछो किसे आती है?

कितना बेहूदा सवाल है यह, 

क्या बेमतलब सवाल है यह, 

कैसे भूल सकता है कोई खुद को,

क्या भूल सकता है कोई खुद को? 

यही तो मगर करता है हर कोई, 

भुलाने खुद को ही तो हर कोई,

मगर ऊब जाता है जब दूसरों से,

लौट जाता है, खुद पर ही हर कोई,

कौन लेकिन चाहता है लौट जाना,

अपने उस बेमतलब खालीपन में,

कौन लेकिन चाहता है मन लगाना, 

अपने उस बेवजूद खालीपन में,

इसलिए फिर लौट जाते हैं सभी, 

अजनबी दुनिया के उस नयेपन में, 

जहाँ हर पल कोई उत्तेजना है, 

जहाँ हर पल कोई क़शिश है, 

जहाँ हर पल कोई उम्मीद है,

जहाँ हर पल ही नई क़ोशिश है!

इस तरह से, भागता है हर कोई,

अपने ही खुद से, अपने-आप से, 

अपने उस बेमतलब खालीपन से,

और अपने-आप की ही याद से!

इसलिए शायद भुलाना चाहता है,

कोई नया एहसास पाना चाहता है, 

जो पुराना हो न पाए फिर कभी,

ऐसा कोई अहसास पाना चाहता है!

लेकिन क्या ऐसा भी कभी होता है,

फिर भी है उम्मीद लगी ही रहती,

इसी उम्मीद के ही सहारे तो,

आदमी जिन्दगी भर जीता है!

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