कविता : 06-09-2021
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तुमसे क्या बात करें! बताओ तुम्हीं कैसे करें!
तुम तो आजकल हमसे कभी मिलते ही नहीं!
जैसे भी हैं, जो भी हैं, कैसे हैं हम, कैसे कहें!
पर ये हालात हैं, तुम कभी मिलते ही नहीं!
बर्फ़ की मानिन्द ठंडे, सख्त हो गए हैं रिश्ते,
ये वो जज़्बात हैं जो, अब तो पिघलते भी नहीं!
रात-दिन चल रहा है, कुछ सिलसिला मगर ऐसा,
रात दिन रोज होते हैं, लेकिन कभी ढलते ही नहीं!
पहले बेनागा जला करते थे, रोज शाम होते ही,
चिराग़ उम्मीदों के वही, अब तो जलते भी नहीं!
तुमसे क्या बात करें!
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