September 28, 2021

कहीं दूर ऐसा भी हुआ!

कविता : 28-09-2021

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कहीं एक था जंगल घना,

शेर एक रहता था वहाँ। 

पेड़ों की छाया में दिन,

रात बिताता चाहे जहाँ।

एक गुफा थी लेकिन वहीं, 

बारिश में रहता था वहीं,

भूख लगे या मौसम हो तो,

घूमने लगता बाहर कहीं। 

कभी कभी या अकसर रोज, 

बूढ़ा कोई मृग या खरगोश, 

आकर उसे निवेदन करता,

अब जीवन मेरा है बोझ। 

अगर कृपा हो जाए तेरी, 

यहीं मुक्ति हो जाए मेरी ।

तब वह शेर कृपा कर देता,

अपनी भूख शान्त कर लेता। 

एक आदमी भटक गया,

उस जंगल में पहुँच गया, 

देखा शेर, तो जान बचाकर, 

तेज वहाँ से भागा सरपट,

शेर देखकर हँसने लगा,

घास ने पूछा : हँसते क्यों हो! 

पेड़ों पौधों ने भी यह पूछा,

बोलो दादा! क्यों हँसते हो! 

शेर ने कहा, इस जंगल में, 

कौन किसी से डरता है!

हर कोई हरदम जीता है, 

हर कोई हरदम मरता है, 

घास नहीं डरती बकरी से, 

बकरी मुझसे या भालू से,

सबको ही है मालूम यही,

जीवन सबका इक-दूजे से! 

डरने का क्या काम यहाँ, 

जीना है तो सुख से जियो,

जब मरना होगा, मर जाना,

हँसते-हँसते जिया करो!

मैं हँसना ही भूल गया था, 

उसको देखा तो याद आया, 

फिर मैंने यह भी सोचा,

उसे छोड़कर क्या पाया!

चलो हुआ, अच्छा ही हुआ, 

अब वह यहाँ न आएगा,

जाने कहाँ चला गया है, 

पर मुझको याद आएगा! 

***

 





 




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