कविता -- सबको पता है!
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छल छुरा, कपट कृपाण,
अपने हृदय में मत रखो,
रखा है यदि तो शान्ति से,
जीने की आशा मत रखो।
लोभ मोहक, डर भयानक,
अपने हृदय में मत रखो,
रखा है यदि तो शान्ति से,
जीने की आशा मत रखो।
क्रोध उग्र, ईर्ष्या विषैली,
अपने हृदय में मत रखो,
रखा है यदि तो शान्ति से,
जीने की आशा मत रखो।
कामना कुटिल, घृणा कुत्सित,
अपने हृदय में मत रखो,
रखा है यदि तो सुख से,
जीने की आशा मत रखो।
प्रेम निश्छल, शान्ति शुचिता,
अपने हृदय में यदि रखो,
तो अवश्य ही शान्ति से,
जीने की आशा तुम रखो!
मैत्री, करुणा, मुदिता तथा,
उपेक्षा, सूत्र, -जीवन के चार,
सीख लो व्यवहार में यदि,
जीने की आशा तुम रखो।
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